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________________ आसमान को छू रहा था । सुबह ठंडक के वातावरण में दोनों संघों ने तीर्थयात्रा के लिए प्रयाण किया। उसी समय दिगंबर संघ के आरक्षकों ने श्वेतांबर संघ के यात्रिकों को यात्रा करने से रोका । यह तीर्थ दिगंबरों का है, यहाँ हम तुमसे पहले आए हैं, इसलिए सर्वप्रथम यात्रा हम करेंगे । दिगम्बरों की इस बात का अवमूल्यन करते हुए श्वेतांबर संघ आगे चलने लगा । मानकषाय से गर्वित दिगंबर संघपति पूर्णश्रेष्ठि क्रोधित हुए । और सैन्य के पीठबल के साथ चुनौती दी - सावधान ! अगर एक भी कदम आगे बढ़ाया तो तुम्हारा मस्तक धड से अलग करने में एक क्षण का भी विलंब नहीं होगा । पूर्णश्रेष्ठि का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच गया है, ऐसा जानकर कुशल बुद्धिमान पेथडमंत्री ने बल के सामने कला से कार्य करने का निर्णय किया । भूतकाल के इतिहास का एक-एक पन्ना उलटकर दिगंबरों के पराभव के प्रसंगों का वर्णन कर युक्तिपूर्वक यह तीर्थ श्वेतांबरों का ही है यह बात पूर्णश्रेष्ठि के दिमाग में बिठाने का बहुत प्रयत्न किया । परन्तु पूर्णश्रेष्ठि इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार न हुए। अनेक प्रकार के वाद-विवाद हुए । दोनों संघपतियों के बीच वाक्युद्ध चला । दिगंबरों का जूनून बढने लगा । पूर्णश्रेष्ठि क्रोध से लालपीला हो गया । ___ वर्षों के अनुभव के कारण तीक्ष्ण बनी हुई बुद्धिवाले दोनों पक्ष के वृद्ध पुरुष आगे आए, और बोले "आप दोनों पुण्यशाली पुरुष हो । किसी प्रचंड पुण्योदय के योग से इस महातीर्थ के संघपति बनने का सौभाग्य आपको मिला है। अनेक भवों के कर्मबंधन का क्षय करनेवाले इस महातीर्थ की पावन भूमि के स्पर्श को प्राप्त करने के पश्चात् वाद-विवाद क्यों? आप दोनों इस विवाद का त्याग कर एक साथ ही गिरिवर पर आरोहण करो, जिससे संघ को आगे पीछे होने के झगड़े का अवकाश ही न रहे । अभी यह तीर्थ न तो दिगंबर का है न ही श्वेतांबर का । ऐसा विचार करके श्री नेमिनाथ दादा के दरबार में पहुचो ! बाद में इन्द्रमाला पहनने के अवसर पर चढावें में जो धनद्रव्य ज्यादा प्रमाण में बोलेंगे उनका यह तीर्थ ! क्योंकि क्षत्रिय शस्त्र से युद्ध करते हैं, पंडित शास्त्र से युद्ध करते हैं, क्षुद्र हाथ से झगडते हैं, स्त्री कटुवचन से कलह करती है, पशु सिंग से कलह करते हैं, और व्यापारी धन से कलह करते हैं । हम भी व्यापारी होने के कारण उसी तरह से कलह का निवारण करें, यही शोभास्पद लगता है।" विबुध ऐसे बडों के हितकारी वचनों को दोनों पक्षों ने सहर्ष स्वीकार किया । सर्व यात्रिकों ने गिरि आरोहण के लिए ६८
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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