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________________ प्रयाण किया । सभी श्री नेमिनाथ प्रभु के मुखकमल को देखकर मंत्रमुग्ध बन गए । अत्यन्त भावपूर्वक परमात्मा को नमस्कार करके, स्नात्र, ध्वजारोहण, नृत्य और स्तुति आदि अनेक प्रकार की भक्ति में मग्न बन गए। इन्द्रमाला के चढावे का समय आया। आज यह तीर्थ किसका? इस गहरे प्रश्न के लिए दोनों पक्ष अपनी सर्व धनसंपत्ति को प्रभु के चरणों में, समर्पित करने के लिए तैयार हुए । “विधि के लेख को कोइ मिटा नहीं सकता" इस कहावत की सत्यता बताने के लिए श्री नेमिनाथ प्रभु की बायीं ओर पूर्णचन्द्र श्रेष्ठि और दायीं ओर, मानों विजय की वरमाला पहनने के संकेत से, पेथडमंत्री स्वाभाविकता से ही खड़े रहे। गिरनार गिरिवर स्वयं की मालिकी का है ऐसा साबित करने के लिए दोनों पक्षों ने पहले सोनामहोर बाद में अनुक्रम से सुवर्ण के सेर प्रमाण और अंत में सोने की धडी के द्वारा चढ़ावे बोलना प्रारंभ किया । (१ धडी = १० मण = २०० किलो) पेथडमंत्री ने इन्द्रमाला के लिए सुवर्ण की ५ धडी कही.... पूर्ण श्रेष्ठि ने कहा ६ धडी, पेथडमन्त्री ने कहा ७ धडी इस तरह अनुक्रम से बढ़ते-बढते धडियों की संख्या बढ़ने लगी तब पेथडमंत्री ने कहा १६ घडी सुवर्ण ! उस समय पूर्ण श्रेष्ठि चुप हो गया । उसने तुरंत मंत्रीश्वर के पास आठ दिनों की मोहलत मांगी । पेथडमंत्री तो जोश में थे। उन्होंने पूर्ण श्रेष्ठि की मांग को सहर्ष स्वीकार करके आठ दिनों के बदले १० दिनों की मोहलत दी। पूर्णश्रेष्ठि ने संघ में आए हुए सभी यात्रिकों के पास जितना हो उतना सवर्ण लेना प्रारम्भ किया । इस तीर्थ की मालिकी के खातिर सभी ने अपने हाथ के कंगन, सोना महोर, गले के हार आदि विविध आभूषणों का ढगला कर दिया । इकट्ठे हुए सुवर्ण की संख्या २८ घडी हो गयी। और उसी दौरान दिल्ली से भी सुवर्ण आने की तैयारी थी। आज पूर्णश्रेष्ठि के आनंद का पार न रहा । अब तो इस तीर्थ की मालिकी हम से दूर नहीं, ऐसी कल्पना के साथ समस्त दिगंबर संघ में आनंद का सागर उछल रहा था । इस तरफ पेथडमंत्री ने भी दिगंबर संघ के उल्लास और तीर्थ के प्रति लगाव को अपनी विचक्षण बुद्धि की मापपट्टी से मापा । उसे भी यह खेल बराबरी का है ऐसा अंदाज आ गया था । तुरंत ही उसने २४ मिनिट में १ योजन का अंतर पार कर सके वैसी शीघ्रगामिनी ऊंटनीयों को सुवर्ण लाने के लिए मांडवगढ़ की तरफ भेजा । इन्द्रमाला के चढावे की महोलत पूर्ण होते ही पुन: इस तीर्थ के प्रश्न का अंत लाने के लिए अंतिम दाव खेलते हो वैसे पूर्णश्रेष्ठि ने पुन: पेथडमंत्री को चुनौती दी । 'अट्ठावीस धडी सोना' इस समय पूर्णश्रेष्ठि तीर्थ हाथ में आ गया हो वैसे उल्लास
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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