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तीरिक्षा का वेज सिनाश
यात्रा सत्त्रागारं, सुकृतततेर्दुष्कृतापहृतिहेतुः ।
जनिधनवचनमनस्तनु-कृतार्थता तीर्थकृत्वफला || "यात्रा, पुण्य की श्रेणी की दानशाला है, पाप को नाश करनेवाली है, जन्म, धन, वचन, मन और शरीर को कृतार्थ करनेवाली है तथा तीर्थंकर नामकर्म की प्राप्ति करवाने वाली है।"
तीर्थयात्रा के ऐसी विशिष्ट महिमा को जानकर, विविध प्रकार के दान से देदीप्यमान ऐसी यश-कीर्तिवाले, सुवर्णसिद्धि प्राप्त करनेवाले, गुरुवर के हृदय में स्थान प्राप्त करने वाले, मंत्रीश्वर पृथ्वीधर अर्थात् पेथडमंत्री संघ सहित सिद्धाचल महातीर्थ की स्पर्शना करने पधारे । अत्यन्त उल्लास के साथ गिरिवर को जुहारकर श्री सिद्धाचल के शिखर पर बिराजमान श्री आदिनाथ भगवान की वंदन, पूजन आदि क्रियाओं के द्वारा भक्ति करके अत्यन्त प्रशंसा को प्राप्त कर मंत्रीश्वर ने २५ धडी सुवर्ण से युगादिदेव के चैत्य को सुशोभित किया ।
सिद्धिगिरि में सिद्धपद को प्राप्त हुए अनंत आत्माओं के स्मरण की सुवास का आस्वादन करने के लिए रुके हुए संघ ने कुछ दिनों के पश्चात् रैवताचल महातीर्थ की तरफ प्रयाण किया । अनंत-अनंत तीर्थकर परमात्मा के दीक्षा-केवलज्ञान और मोक्षकल्याणक से पावन बनी गिरनार गिरिवर की भव्य भूमि की स्पर्शना के मनोरथों के साथ संघ के दिन बीत रहे थे। वर्तमान चौवीशी के बाईसवें तीर्थंकर, बालब्रह्मचारी श्री नेमिनिरंजन, तथा अतीत चौबीसी के आठ तीर्थंकर के दीक्षा-केवलज्ञान और मोक्षकल्याणक और दूसरे दो तीर्थंकरों का मात्र मोक्षकल्याणक, अनागत चौवीशी के चौवीशों तीर्थंकरों के मोक्षकल्याणक से पावन ऐसी रैवतगिरि तीर्थ की पवित्र भूमि के स्पर्श से सभी अपने जीवन को धन्य बनाने के लिए तडप रहे थे । दूर-दूर से रैवतगिरि के शिखरों को देखते ही सभी आनंदविभोर बन गए।
मंगल प्रभात में पेथड मंत्री के संघ ने रैवतगिरि की मनमोहक तलहटी में प्रवेश किया । उसी समय योगिनीपुर-दिल्ली के रहेवासी अग्रवालकुल में जन्मे हुए अल्लाउद्दीन बादशाह का कृपापात्र पूर्ण नामक श्रेष्ठि जो दिगंबर मत का कट्टरपक्षी था, वह भी संघ लेकर रैवतगिरि की तलहटी में तंबू डालकर रहा था । रूप और रुपये उसके दास बने हुए थे। धनवैभव का मद भी
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