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बादशाह की गंभीर बातों को सुनकर अनार्य चिन्तित हुए और सोचने लगे कि राजा यदि नाराज होंगे तो हमारे बारह बज जायेंगे । बादशाह अभी तक तो विचार में थे कि अनार्य और प्रतिमा को नुकसान, यह सब क्या है ? परन्तु अनार्यों के स्पष्टीकरण से बादशाह की उलझने सुलझने लगी और स्वप्न की वास्तविकता समझ में आ गयी ।
बादशाह बहुत क्रोधित हुए। उनकी आवेशवाली विकृत मुखाकृति देखकर सभी अनार्य कम्पित होने लगे । बादशाह ने कहा, "इस जिनप्रतिमा के प्रभाव को बकवास कहनेवाले तुम कौन हो ? यह खुदा तो जीवंत देव है, ऐसे खुदा की प्रतिमा का नाश करने का षड्यंत्र रचने का अधिकार तुम्हें किसने दिया ? तुम्हारे इस काली करतूत की सजारुप तुम्हें फाँसी के फंदे पर लटकाने का मेरा आदेश है। सिपाहियों, इन बदमाशों को फाँसी पर चढाओ ।"
क्रोध के कारण बादशाह की आँखों से अंगारे बरस रहे थे। उनके निर्णय को सुनकर सभी मुग्ध बन गए। सभी के हृदय में करुणा के भाव उभर रहे थे। नगरजन तथा श्रावक वर्ग ने बादशाह को सजा न करने की विनंति की परन्तु बादशाह नहीं माने। अंत में श्रावक वर्ग सूरिजी के पास जाकर विनंति करता है, "गुरुदेव, बचाओ ! उन धर्मजनूनियों के द्वारा की गयी हरकत से महाराजा कोपायमान हुए और उन्हें 'सजाए मौत' का आदेश फरमाया है। हमने बादशाह से बहुत विनंति की परन्तु वे नहीं माने, गुरुदेव ! अब आप ही उनके तारणहार हो ! कोई रास्ता निकालिए ।"
सूरिवर श्री श्रावकवर्ग की बातें सुनकर चिन्तित हुए। अहिंसा के संदेश को विश्वमात्र में पहुँचानेवाले जिनशासन के ये दूत, इन जीवों की ऐसी हिंसा को कैसे सहन कर सकते हैं ? वे तात्कालिक बादशाह के पास पहुँचे, बादशाह को समझाया कि जिनशासन की नींव जीवदया है। अरे! सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों की भी जब चिंता की जाती है तब ऐसे जींदे मानवों को फाँसी तो कैसे हो सकती है ? यह प्रभु महावीर का शासन है और “क्षमा वीरस्य भूषणम्" इस न्याय के अनुसार अपराधी को सजा देने के बदले उसे क्षमा करना ही शूरवीरता की निशानी है। महाराजा सूरिजी के वचनों से विशेष प्रभावित हुए और उनके वचनों को शिरोमान्य करके उन अनाथ धर्मजूनूनी को बंदीखाने से मुक्त कर दिया गया और सबके हृदय में से निकले हुए "जैनं जयति शासनम्" के अंतर्नाद से समस्त वातावरण गूंज उठा ।