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गिरनार गिरिवर के जिनालयों में जितने भी श्यामवर्णी प्रतिमाजी बिराजमान थे, उन सबको इकट्ठा कर एक कमरे में रख देते हैं और जैन श्रावक वर्ग को बताते हैं कि, "यदि यह सब काले देव रात को कोई चमत्कार बतायेंगे तो हम ये प्रतिमायें आपको सौंप देंगे, अन्यथा सुबह समग्र सभा के बीच जाहिर में इन प्रतिमाओं को चकनाचूर कर देंगे।
समन श्रावक वर्ग चिंतित हो गया। सभी शोकातुर बन गए । सूर्योदय हुआ। आज तो अनार्यों के आनंद का पार नहीं था। रात को एक भी प्रतिमा ने चमत्कार नहीं बताया । यह बात श्रावक वर्ग को बताते हुए कहा, "ये तुम्हारे पत्थर के पूतले सारी रात पत्थर की तरह जड़ ही रहे, न तो उनके मुख से एक भी शब्द निकला या न ही उनका एक भी रोम फरका, अब उनको चकनाचूर होते हुए देखने का परमसौभाग्य आ गया है, उसके लिए तैयार हो जाओ।"
श्रावक वर्ग भयभीत हो गया । सभी मंत्रमुग्ध बन गए । अब क्या होगा ? इन प्रतिमाजी के चकनाचूर होने से पहले हमारे प्राण निकल जाय । सभी सूरिवर के पास जाकर विनंति करने लगे, "गुरुदेव ! अब तो आप ही हमारे शरणाधार हो, किसी भी तरह प्रतिमाजी को चकनाचूर होने से बचाओं !"
सूरिवर इस घटना को सुनकर गंभीर बने और तात्कालिक बादशाह को विस्तार से सारी बात बतायी । बादशाह उन धर्मजनूनीयों की इस करतूत से संपूर्ण अज्ञात थे। परन्तु इस हकीकत को जानकर रात को स्वयं को आए हुए स्वप्न की टूटती कडी यहाँ पर जुडती हो, वैसा संकेत मिला । बादशाह ने राजपुरुषों को, इन धर्मजनूनी अनार्यों को स्वयं के समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया ।
बादशाह का आमंत्रण सुनकर अनार्य बहुत उत्साह से आए । रात में घटित घटना बादशाह को बताते हुए उन्होंने कहा, "इस मूर्ति के प्रभाव की बात बकवास है। महाराजा ! कल तो आप ठगे गये हो। ये काले भूत तो पूरी रात गूंगे ही रहे हैं!" बादशाह ने गंभीरता से कहा, "इसके प्रभाव का अनुभव नसीब में हो तो ही होता है। अरे ! आज रात को ही मुझे स्वप्न में एक गंभीर अनुभव हुआ ।" अनार्यों ने कहा, "बादशाह ! स्वप्न में क्या कोई प्रभाव देखा ?"
बादशाह ने कहा, "हाँ, आज रात को भूतों ने मुझे भयंकर चेतावनी देकर सावधान किया कि, यदि कल सुबह तुम्हारे जनूनी अनार्यों के द्वारा जिनप्रतिमा को लेशमात्र भी नुकसान हुआ तो तुम अपने खुदा को याद कर लेना बाद में नरक में तुम्हारा खुदा नहीं मिलेगा।