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सौभाग्य मंजरी
भरतक्षेत्र के दक्षिण पथ में कर्नाटक नामक देश था। वहाँ अनेक प्रकार के राजवैभववाला चक्रपाणी राजा था। उसे सभी को प्रिय, रुपवान आदि अनेक गुणो से उज्ज्वल ऐसी प्रियंगुमंजरी नामक पत्नी थी। दिन प्रतिदिन भोगविलासादि राजसुखों को भोगते-भोगते प्रियंगुमंजरी रानी की कुक्षी से पुत्री का जन्म हुआ। जन्म से ही वह सर्वांगसुन्दर होते हुए भी अशुभ कर्म के प्रभाव से उसका मुख बंदरी के जैसा था। राजा भी इस घटना से अत्यन्त विस्मित हुआ और कोई अमंगल की शंका से उसके उपशम के लिए जगह-जगह देवी-देवताओं की पूजा, स्रात्र महोत्सव आदि अनेक शांतिकर्म के अनुष्ठान करवाता है। मुख से कुरूप परन्तु सौभाग्य में सुंदर ऐसी उस राजकुमारी का सौभाग्यमंजरी नाम रखा गया। वह चौसठ कलाओं में निपुण बनी ।
एकबार राजदरबार में सौभाग्यमंजरी महाराजा की गोद मैं बैठी थी। उस समय कोई परदेशी पुरुष राजदरबार में प्रवेश करता है, और महाराजा के समक्ष तीर्थाधिराज श्री पुंडरिकगिरि की महिमा बताकर संसारतारक और पुण्य के कारक ऐसे रैवतगिरि महातीर्थ का माहात्म्य प्रारंभ करते हुए कहता है कि, महाराज! इस अवनीतल पर पुण्य का संचय और दुःख - दरिद्रता का नाश करनेवाला रैवताचल पर्वत जय को प्राप्त हो रहा है। इस गिरिवर के पवित्र शिखर, नदी, झरने, धातु और वृक्ष सभी जीवों को सुख देनेवाले हैं। श्री नेमिनाथ परमात्मा की सेवा के लिए आकर देवता भी आनंद-प्रमोद को पाकर स्वर्ग के महासुख को तृण से भी हल्का मानते हैं। इस तरह रैवतगिरि महातीर्थ की अनेक बातें सुनकर महाराजा की गोद में बैठी राजकुमारी सौभाग्यमंजरी को जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त होते ही वह मूर्च्छित होती है ।
रैवतगिरि के माहात्म्य की बातें सुनकर मूर्छित सौभाग्यमंजरी शीतोपचार से पुनः चेतनवंती बनकर हर्षविभोर बनकर अपने पिता को कहती है कि, "ओ पिताजी ! आज का दिन मेरे लिए महामंगलकारी है, उसका कारण आप ध्यान से सुनो ! पूर्वभव में इस परदेशी के द्वारा वर्णित रैवताचल पर मैं बंदरी थी। जातिस्वभाव से चंचल मैं स्वच्छंद और अविवेक से गिरि के शिखर, नदी, झरने, वन और वृक्षो के बीच सतत इधर उधर कूदती थी। उस गिरिशिखर की पश्चिम दिशा में अमलकीर्ति नामक नदी है । विविध प्रकार के विशिष्ट प्रभाववाले अनेक द्रव्यों से भरपूर ऐसी यह नदी श्री नेमिनाथ परमात्मा की अमीदृष्टि से पवित्र बनी है। एक बार कूदते-कूदते मैं बंदर के समूह के साथ इस नदी के किनारे के पास आयी, परन्तु भवितव्यता के योग से यहाँ से वहाँ कूदने के कारण फलित बने आम के वृक्ष की घनी शाखाओं के विस्तार में फँस जाने से लटकते-लटकते थोडे