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________________ ही समय में मेरी मृत्यु हो गयी। इस रैवतगिरि महातीर्थ में रहने के प्रभाव से मैं वहाँ से मरकर तिर्यंच भव का त्याग करके आपकी पुत्री के रूप में यहाँ जन्मी हूँ । अत्यन्त रुपवान यह देह होते हुए भी मुझे बंदरी का मुख मिलने का कारण आप सुनो ! उस आम्रवृक्ष की घनी शाखाओं के बीच में फँसा हुआ मेरा शरीर, शाखा के सुकने से धीरे धीरे अमलकीर्ति नदी के जल में गिरने से मनोहर रूप को धारण करनेवाला बना । परन्तु मेरा मुख शाखा में ही फँसे रहने के कारण नदी के सुपवित्र जल के स्पर्श से वंचित रहने से बंदरी के जैसा ही रहा । ओ ! पिताजी ! अब उस नदी के निर्मल जल के स्पर्श से वंचित रहे हुए मेरे उस मस्तक को आप तुरंत ही उस नदी के पावन जल में गिरा दो, जिससे मैं मुख सहित सर्वांगसुंदर बन जाऊँ। इस परदेशी पुरुष से वर्णित रैवतगिरि महातीर्थ के माहात्म्य के श्रवण से मुझे जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हुआ है । इस कारण यह सारा वृत्तांत कहने के लिए मैं समर्थ बनी हूँ । राजकुमारी के इन वचनों को सुनकर अत्यन्त विस्मित बने हुए राजा चक्रपाणी ने नदी के तट के पास रहे आम्रवृक्ष की उस घनी शाखाओं में लटकते हुए बंदरी के मुख को पवित्र जल में गिराने के लिए सेवकों को आदेश दिया। महाराज की आज्ञा को शिरोमान्य करके सेवक आज्ञा का पालन करने के लिए दौडे। और जिस समय उस बंदरी के मुख को नदी के जल में गिराया गया उसी समय राजकुमारी सौभाग्यमंजरी भी सर्वांगी सुंदरता को धारण करनेवाली बन गयी । चक्रपाणी राजा भी तीर्थ माहात्म्य के साक्षात् प्रभाव को देखकर अत्यन्त विस्मित हुआ । कोई ही ऐसा मोह के आधीन मंदमति वाला पुरुष होगा, जो ऐसे प्रसंग के प्रति श्रद्धा न रखता हो। क्योंकि मंत्र, औषधि, मणि और तीर्थो की महिमा ही अचिन्त्य होती है। महाराजा चक्रपाणि युवावस्था में आयी राजकुमारी सौभाग्यमंजरी के लिए सुयोग्य वर की तलाश में तत्पर बना । लेकिन कर्म की विचित्रता के योग से संसारवास से वैराग्य पाकर सौभाग्यमंजरी ने विवाह के कँटीले मार्ग पर कदम बढाने के बदले शाश्वत सुख की साधना के लिए रैवतगिरि महातीर्थ की तरफ जाना पसंद किया। पिताश्री को अपनी भावना बताकर वह रैवताचल के शीतल सान्निध्य में रहकर तीव्र तप आचरण के द्वारा अनेक जन्मों के अशुभ कर्मों का नाश करते हुए श्री नेमिजिन के ध्यान में मग्न बनकर स्वआयुष्य पूर्ण करके मृत्यु पाकर, तीर्थराग के फल स्वरूप उसी तीर्थ में व्यंतरदेवी के रूप में उत्पन्न होती है। पूर्वभव के भीष्मप के प्रभाव से उस नदी के द्रह में निवास करके श्री संघ के अनेक विघ्नों का नाश करनेवाली, सर्व देवताओं को अनुसरण करने योग्य महादेवी बनती है। 1 ५१
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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