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________________ महातीर्थ के ऐसे प्रभाव को मुनिवर के मुखकमल से सुनकर अशोकचन्द्र तो रैवतगिरि के उच्च शिखर पर लौ लगाकर स्थिर चित्त से तपयज्ञ की घोर साधना की शुरुआत करता है । तपयज्ञ के प्रभाव से प्रभावित गिरनार महातीर्थ की अधिष्ठायिका अंबिका देवी प्रसन्न हुई । जिसके स्पर्शमात्र से लोह भी सुवर्ण बन जाता है वैसा दरिद्रता दूर करने का पारसमणि अशोकचन्द्र को देती है। पारसमणि के प्रगट प्रभाव से अपार संपत्ति का स्वामी बना अशोकचन्द्र अपने सुदृढ सैन्यबल के प्रताप से राज्य की प्राप्ति करता है। पूर्वकृत अशुभकर्मों के आवरण को दूर करके अशोकचन्द्र के शुभकर्मों का सूर्य मध्याह्न में चढने लगा। संपत्ति के प्रताप से प्राप्त भोगविलास की सामग्री में चकचूर बना अशोकचन्द्र एकदिन अचानक विचारधारा में चढ़ता है कि रैवतगिरि महातीर्थ और शासन अधिष्ठायिक अंबिकादेवी के पुण्यप्रसाद से आज इस राजवैभवादि सामग्री की प्राप्ति होने से भोगसुख के विषयराग में आसक्त बना हुआ मैं उस उपकारी का स्मरण भी नहीं करता ? धिक्कार हो मुझे ! मैं कैसा कृतघ्न बना ! ___पश्चात्ताप के निर्मल झरने में स्नान करता हुआ अशोकचन्द्र अपनी समस्त रिद्धि-सिद्धि के साथ ठाठमाठ से संघ और स्वजनों से घिरा हुआ, मार्ग में जगह-जगह अनेक गाँवों में सेवाभक्ति, अनुकंपा, स्वामिवात्सल्य, जीर्ण जिनालयों का जीर्णोद्धार कार्य आदि अनेकविध सकत करते करते प्रथम तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा करके अनंत तीर्थंकरों की सिद्धभूमी ऐसे रैवतगिरि महातीर्थ की यात्रा के लिए जाता हैं। गिरि आरोहण करके महाप्रभावक ऐसे गजपदादि कुंड के पवित्र जल से श्री नेमिप्रभु की स्नात्रादि विधि सहित भक्ति करने के पश्चात् शासन अधिष्ठायिका अंबिकादेवी की पुष्पादि पूजा करके वैराग्यवासित अशोकचन्द्र विचार करता है कि अरे ! इस रैवतगिरि महातीर्थ के महाप्रभाव से मैं पिछले ३०० वर्षों से अनेक प्रकार की रिद्धिसिद्धि और राजवैभव के साथ राज्य भोग रहा है। बस ! अनेक भवों के दुःखों की परम्परा को बढाने वाले समुद्र के तरंगों की तरह चंचल इन भौतिक सुखों को भोगकर अब मैं थक गया हूँ। अब तो मुझे अविनाशी ऐसे मोक्ष सुख को प्राप्त करना है। ऐसी चिंतन श्रेणी में चढता हुआ अशोकचन्द्र अपने पुत्र को राज्य सौंपकर श्री नेमिनाथ परमात्मा की शरण ग्रहण करके संयम की साधना में लग जाता है। अनेक प्रकार की आराधना के द्वारा अनेक भवों के कर्मों का क्षय करने के लिए रैवतगिरि के परम सान्निध्य में रहने लगा और तपाग्नि के द्वार सर्व कर्ममल को तपाकर शुभध्यान की उज्ज्वल ज्वाला में सर्वघाती कर्मों को भस्मीभूत करके कैवल्य लक्ष्मी की प्राप्ति करता है। उसी समय शेष सर्वअघाती कर्मों का भी नाश करके रैवतगिरिराज की मनमोहक भूमि पर मोक्ष पद को प्राप्त करता है। श्री रैवतगिरि महातीर्थ की सेवा-भक्ति के द्वारा मनुष्य इस जन्म में सकल संपत्ति प्राप्त करता है, परभव में सद्गति और
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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