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________________ BAS E .... . . . सज्जनमंत्री भीड के बीच भीमा साथरिया की भावना का मान रखकर, समस्त महाजन की सहकार देने की भावना को स्वीकार करने की असमर्थता दिखाते हैं। भीमा साथरिया जीर्णोद्धार के लिए रकम देने का वचन लेकर मंत्रीश्वर वापिस जुनागढ़ आते हैं । वहाँ महाराजा सिद्धराज के नजदीक पहुँचने के समाचार मिलते हैं। सुबह में महाराजा का प्रवेश होता है उस समय जुनागढ़ के नगरजन ठाठमाठ से महाराजा का स्वागत करते हैं और उनको बधाई देते हैं। महाराजा सिद्धराज के महल में आते ही सज्जन सिर झुकाकर महाराजा को उनके स्वास्थ्य के बारे में पुछता है । तब सज्जनमंत्री के दुष्ट व्यवहार की झुठी बातों से भडके हुए महाराज के अंदर की ज्वाला बाहर आई । उन्होंने कहा की, "आपके जैसा विश्वासघाती और राजद्रोही इस राज्य में ऊंचे पद पर नियुक्त हो, वहा स्वस्थता कहा से आयेगी?" सोरठ देश के तीन साल की आमदनी का हिसाब कहाँ है?" महाराज की निरर्थक चिंता का जानकार सज्जन शांत मन से जवाब देता है, "महाराज ! राज के आमदनी की एक-एक पाई का हिसाब तैयार है। आप कृपालु, सफर की थकान उतारने के लिए थोडा आराम फरमाये !" सज्जनमंत्री के दृढतापूर्वक, निर्भय भरे जवाब से महाराज सिद्धराज पल दो पल में ठंडे हो गये । अपने निरर्थक गुस्से के लिए उनको पश्चात्ताप होने लगा। पूरे दिन नगरवासियों के मुंह से सज्जनमंत्री की कार्यकुशलता और राजकार्य की खुले दिल से प्रशंसा सुनी, साथ में सज्जनमंत्री के द्वारा बनवाये गए जिनालय के सुंदर जिर्णोद्धार के बारे में भी सुना । सूर्यास्त के समय महाराज ने मंत्री को बुलाकर सुबह में संकलगाव से निकलकर गिरनार गिरिवर पर आरोहण करने की अपनी भावना व्यक्त की। मंगलमय प्रभात में महाराज और मंत्री गिरि आरोहण कर रहे थे, उस समय शिखर पर शोभित धवलचैत्य और आकाश को छुने के लिए उड़ती ध्वजा की शोभा को देखकर, महाराज पुछते है, "कौन भाग्यवान माता-पिता है ? जिसके संतान ने ऐसे सुंदर, मनोहर जिनालयों की हारमाला का सर्जन किया? तब मंत्री कहता है, "स्वामी ! आप । पूज्य श्री के माता-पिता का ही यह सौभाग्य है जिससे आप जैसे महापुण्यशाली के प्रताप से यह अप्रतिम सर्जन हुआ है। आश्चर्यचकित महाराज पलभर के लिए मंत्रमुग्ध बनकर इस बात का रहस्य मंत्री को पुछते हैं तब मंत्री कहता है, "हे स्वामी ! आपके पुण्यप्रभाव से ही यह अप्रतिम सर्जन हुआ है और आपके पिता कर्णदेव, और माता मीनलदेवी भाग्यवान है की आप जैसे शूरवीरपुत्र गुर्जर नरेश ने पूज्य पिताजी की स्मृति में ऐसे देदिप्यमान जिनालयों का सर्जन किया है। सोरठ देश की धन्यधरा की तीन-तीन साल की आमदनी इस जिनालय के नवनिर्माण में खर्च हुई है जिसके प्रभाव से ये मंदिर मन को मोहित कर रहे हैं । आप कृपालु ही सोरठ देश के स्वामी हो इसलिए आपके पिता कर्णदेव और माता मीनलदेवी धन्य बने २४
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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