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________________ भडकाने का षड्यंत्र रचना शुरु किया । महाराजा सिद्धराज भी द्वेष से जलते इस राजपुरुष की बातें सुनकर गरम हो गये। और स्वयं जूनागढ़ जाकर राजकार्य का हिसाब लेने के लिए आतुर हो उठे । राजा को सज्जन के प्रति अनहद अविश्वास जाग उठा । अब कैसे भी करके बाजी हाथ में रखना मुश्किल हो रहा था । महामंत्री बाहड परिस्थिति को जानकर इस समाचार को तुरंत ही जूनागढ़ सज्जनमंत्री तक पहुंचाना चाहते थे। एक पवनवेगी ऊँटनी और सवार के द्वारा बाहड मंत्री ने महाराजा सिद्धराज का समाचार सज्जनमंत्री तक पहुंचाया । कुशाग्र बुद्धि सज्जनमंत्री परिस्थिति को भाप गये । सोरठ की आमदनी की रकम अब कैसे भरी जाये उस विचार में सज्जन खो गये। विचार करते-करते उनको प्रथम वंथली तीर्थ का ध्यान आया। वंथली तीर्थ के रिद्धि-सिद्धिवाले, गिरनार तीर्थ के लिए तन-मन-धन न्योछावर करनेवाले श्रावकों का उत्साह उनके स्मृतिपथ पर आने लगा। जिर्णोद्धार तथा सोरठदेश की राज्यव्यवस्था के कार्य में व्यस्त ऐसे सज्जनमंत्री ने सिद्धराजा के आगमन पूर्व जीर्णोद्धार कार्य में लगी सोरठ देश की आमदनी जितनी रकम इकट्ठी करने के लिए वंथली की ओर प्रयाण किया । महाजनों को इकट्ठा करके गिरनार जिनालय के जीर्णोद्धार की रकम की बात पहले बताई, गाँव के श्रेष्ठियों के बीच अपनी ओर से जितनी हो सके उतनी रकम लिखवाने के लिए होड लगने लगी। सभा की भरचक भीड को दूर करता हुआ, मैले-फटे पुराने कपड़े पहना हुआ एक आदमी आगे आने की कोशिश कर रहा था । तब धाकधमाल के कारण आवेश में आया हुआ एक श्रेष्ठि चिल्लाया कि, "अरे, तेरे लिए वहाँ क्या खाने का रखा है ? गिरिवर के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं। उसमें विघ्न डालने तू कहा जा रहा है? दो पैसे देने की भी तेरी औकात है? वह आदमी तो सबकी उपेक्षा करके मौन धारण कर आगे बढ़ता सज्जनमंत्री के पास पहुंच गया । सज्जनमंत्री के पास में जाकर कान में कहा की, "मंत्रीश्वर ! इस महाप्रभावक गिरनार के लिए मैं मेरा सब कुछ देने को तैयार हु, तो फिर आप सोरठ देश की तीन साल की आमदनी जितनी रकम के लिए क्या कर रहे हो? इस गरीब पर दया करके इसका लाभ मुझे लेने दो । सज्जनमंत्री तो दो मिनट के लिए स्तब्ध रह गये। ऐसे मैले-फटे पुराने वस्त्रवाला मनुष्य और संपूर्ण रकम देने को तैयार यह कौन है? सोच में पड़े हुए सज्जन उसे पुछते हैं कि, "आपका नाम?" नम्रता के साथ उत्तर मिलता है, "भीम साथरिया, मंत्रीश्वर ! गाँव के श्रेष्ठि तो महाभाग्यवान है, उनको तो दान-पुण्य का मौका पलपल मिलता ही है। आज इस गरीब को दो पैसे का पुण्य कमाने का मौका दे दो, तो मेरा जीवन भी धन्य बन जायेगा ।" ऐसे कहकर समस्त सभाजन के समक्ष अपनी भावना व्यक्त कर, सज्जनमंत्री का चरण-स्पर्श कर, अपनी झोली फैलाता है ।
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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