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इस शिखर के रक्षक हो अतः यह द्वार खोलो।" देवी के आदेश से सिद्धविनायक ने तुरंत ही गुफा के द्वार खोले, तब अंदर से दिव्यतेजपुंज प्रगट हुआ और आगे-आगे अंबिकादेवी और पीछे-पीछे रत्नश्रावक ने इस दिव्य गुफा में प्रवेश किया। सुवर्ण मंदिर में बिराजमान विविध मणि, रत्नादि की मूर्तियों को बताते हुए अंबिका देवी कहती है, “हे रतन ! यह मूर्ति सधर्मेन्द्र ने बनायी है, यह मूर्ति धरणेन्द्र ने पद्मरागमणि से बनायी है, यह मूर्तियाँ भरत महाराजा, आदित्ययशा, बाहुबली आदि के द्वारा रत्न, माणेक आदि से बनवायी गयी है तथा दीर्घकाल तक उन्होंने इन बिंबो की पूजा - भक्ति की है। यह ब्रह्मेन्द्र के द्वारा रत्न - मणि का सार ग्रहण करके बनवायी गई है जो शाश्वत मूर्ति के समान असंख्य काल तक उनके ब्रह्मलोक में पूजी गयी है । यह राम और कृष्ण के द्वारा बनायी गयी है। इन मूर्तियों में से जो पसंद हो वह ग्रहण करो ।"
मानव के मन को चुरानेवाली ऐसी मनोरम्य देवाधिदेव की दिव्य मूर्तिओं को देखकर रत्नश्रावक प्रसन्नता के परमोच्च शिखरों को पार करने लगा। आज उसके हर्ष का पार नहीं था। सभी प्रतिमाएँ बहुत सुंदर थी। कौन सी प्रतिमा पसंद करनी, इसका निर्णय करना अति कठिन कार्य बन गया था। अंत में उसने मणिरत्नादिमय जिनबिंब को पसंद किया तब अंबिका देवी ने कहा, "हे वत्स ! भविष्य में दूषमकाल में लोग लज्जारहित, निष्ठुर, लोभ से ग्रस्त एवं मर्यादा रहित होंगे। वे इस मणिरत्नमय जिनबिंब की आशातना करेंगे। तुझे इस तीर्थ का उद्धार करने के बाद बहुत पश्चात्ताप होगा। इसलिए इस मणिरत्नमय मूर्ति का आग्रह छोड़कर ब्रह्मेन्द्र द्वारा रत्न माणिक्य के सार से बनवायी गयी सुदृढ, बिजली आंधी, अग्नि, जल, लोहा, पाषाण अथवा वज्र से भी अभेद्य महाप्रभावक ऐसी इस प्रतिमा को ग्रहण करो !" इतना कहकर देवी ने १२ योजन दूर तक प्रकाशित होनेवाले तेजोमय मंडल को अपनी दिव्य शक्ति से खींचकर सामान्य पाषाण के समान तेजोमयप्रभा रहित प्रतिमा बनाकर कहा, "अब इस मूर्ति को कच्चे सूत के तार से बाँधकर आगे-पीछे या बाजु में देखे बिना शीघ्रातिशीघ्र ले जाओ ! यदि मार्ग में कहीं पर भी विराम करोगें तो यह मूर्ति उसी स्थान पर स्थिर हो जाएगी।" रत्नश्रावक को इस तरह सूचना देकर अंबिकादेवी स्वस्थान पर वापिस लौटी ।
अंबिकादेवी की असीम कृपा के बल से प्राप्त प्रतिमा को लेकर रत्नश्रावक देवी के आदेशानुसार आगे-पीछे या बाजु में देखे बिना अस्खलित गति से कच्चे सूत के तार से बाँधे गए इस बिंब को, मानों कपास न ले जा रहा हो ! उस तरह इस जिनबिंब को जिनालय के मुख्य द्वार तक लाते है। उस अवसर पर वह सोचता है कि जिनालय में स्थित पूर्व की लेपमय प्रतिमा को हटाकर अंदर की भूमि की प्रमार्जना कर सफाई न करूँ, तब तक इस नवीन जिनबिंब को यहीं रखू । प्रासाद के अंदर सफाई
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