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________________ ४२. गिरनार महातीर्थ के गजपदकुंड का 'जलपान' करने से काम, श्वास, अरूचि, ग्लानि, प्रसुति और उदर के बाहरी रोग भी, अंतर के कर्ममल की पीडा की तरह नाश होते हैं। ४३. जगत में कोई भी ऐसी औषधिया, सुवर्णादि सिद्धियाँ और रसकूपिकाएं नहीं, जो इस गिरनार तीर्थ पर न मिले । ४४. आकाश में उड़ते पक्षियों की छाया भी अगर इस गिरनार पर्वत को छूती है तो उनकी भी दुर्गति का नाश होता है। ४५. सहसावन में नेमिनाथ भगवान के दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए थे । ४६. सहसावन में (लक्षारामवन) करोडों देवताओ ने श्री नेमिनाथ भगवानजी के प्रथम और अंतिम समवसरण की रचना की थी। प्रभुजी ने यहाँ पर प्रथम और अंतिम देशना (प्रवचन) दी थी। ४७. सहसावन में सोने के चैत्यों में मनोहर चौबीसी का निर्माण किया गया था । ४८. सहसावन में कृष्णवासुदेव द्वारा रजत, सुवर्ण और रत्नजडित प्रतिमा युक्त तीन जिनालयों का निर्माण हुआ था । ४९. सहसावन की एक गुफा में भूत-भविष्य और वर्तमान ऐसे तीन चौबीशी के बहत्तर प्रतिमाजी बिराजमान हैं। ५०. सहसावन में (लक्षारामवन) श्री रहनेमिजी और साध्वीजी राजीमतिश्रीजी आदि मोक्षपद प्राप्त कर चुके हैं । ५१. सहसावन में अभी भी प्राचीनकालीन श्री नेमिनाथ परमात्मा की प्रतिमायुक्त अद्भुत समवसरण मंदिर है। ५२. गिरनार महातीर्थ की पहली ट्रंक पर अभी भी चौदह-चौदह बेमिसाल जिनालय पर्वत के ऊपर तिलक समान शोभित हो ५३. भारतभर में मूलनायक के रूप में तीर्थकर नहीं होते हुए भी सामान्य केवली सिद्धात्मा श्री रहनेमिजी का एकमात्र जिनालय गिरनार महातीर्थ में है। ५४. श्री हेमचंद्राचार्य, श्री बप्पभद्रसरि. श्री वस्तुपाल-तेजपाल, श्री पेथडशा आदि अनेक पुण्यात्माओं को सहायता करने वाली, गिरनार महातीर्थ की अधिष्ठायिका श्री अंबिका देवीजी आज भी यहाँ मौजुद है। ५५. जब तक गिरनार महातीर्थ की यात्रा नहीं की हो, तब तक ही जीवों के सर्व दुःख, सर्व पाप और संसार का घोर भ्रमण रहता है।
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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