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३१. भद्रशाल आदि वन में सर्व ऋतुओं में सर्व जाति के फूल खिलते हैं। जल और फल सहित भद्रशाल आदि वन से घिरा
हुआ यह रमणीय गिरनार पर्वत इंद्रो का क्रीडापर्वत है । ३२. गिरनार महातीर्थ में हर एक शिखर के ऊपर जल, स्थल और आकाश में घूमनेवाले जो जीव होते हैं, वे सब तीन भव
में मोक्ष प्राप्त करते हैं। ३३. गिरनार महातीर्थ पर वृक्ष, पाषाण, पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय और अग्निकाय के जीव हैं वे व्यक्त चेतनावाले नहीं होते
हुए भी इस तीर्थ के प्रभाव से कुछ काल में मोक्ष प्राप्त करनेवाले होते हैं। ३४. जो जीव-गिरनार महातीर्थ पर आकर अपना न्यायोपाजित धन सुपात्र दान द्वारा सद्व्यय करते हैं, उनको अनेक भवों तक
सर्व संपत्ति प्राप्त होती है।। ३५. उत्तम ऐसे भव्य जीव गिरनार महातीर्थ में मात्र एक दिन भी शील धारण करते हैं, उनकी हमेशा सुर-असुर, नर और नारियाँ
सेवा करते हैं। ३६. गिरनार महातीर्थ में जो उपवास, छठ, अठ्ठम आदि तप करते हैं, वे सर्व सुखो का उपभोग करके मोक्षपद अवश्य प्राप्त करते
३७. जो जीव गिरनार तीर्थ पर आकर भाव से जिनप्रतिमाजी की पूजा-अर्चना करते हैं, वे शीघ्र ही मोक्षपद प्राप्त करते हैं, घर
में बैठकर भी, शुद्ध भाव से अगर गिरनारजी का ध्यान करें, तो भी चौथे भव में मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। ३८. गिरनार महातीर्थ की पवित्र नदियाँ, झरने, शिखर, धातुएँ और पेड-पौधे भी सर्वजीवों को सख-शांति प्रदान करते हैं। ३९. गिरनार पर्वत पर श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा के अवसर पर, प्रभजी के स्नात्राभिषेक के लिए तीनों लोक की नदिया.
विशाल गजपदकुंड में आकर समाई थी। ४०. गिरनार महातीर्थ में 'मोक्षलक्ष्मी' के मुख रूप रहे हुए 'गजेन्द्रपद' (गजपद) नामक विशाल कुंड के पवित्र जल के स्पर्श
से ही अनेक जन्मों के पापो का नाश होता है। ४१. गिरनार गिरिवर के गजेन्द्र पद कुंड में स्नान करके जिन्होंने जिनेश्वर की प्रतिमा को प्रक्षाल कराया है, उन्होंने कर्ममल का
नाश करके अपनी आत्मा को पवित्र किया है।