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________________ अंबिकादेवी की देहरी के पास आराधना कर रहे थे तब दादा के दरबार में से लगभग पोने घंटे तक लगातार नृत्यों का नाद और नुपूर के झनकार की दिव्यध्वनि का गुंजन सुनाई दिया था । (११) वि.सं. २०३१ के कार्तिक महिने में एक आराधक आत्मा ने खुब भावपूर्वक श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमाजी को प्रक्षाल करने के बाद अंगलूंछणा वगैरह से सब कुछ सुखा कर दिया था । लेकिन जब पूजा करने गये तब प्रभुजी के चरणकमलों में से लगभग चार कटोरी भर जाए उतना दिव्य सुगंधी नवणजल झरा था । (१२) इस गिरनार की औषधि के अचिन्त्य प्रभाव से गत सैकड़ों वर्षों में अनेक महापुरुष आकाशगमन द्वारा तीर्थयात्रा करते थे । (१३) एकबार एक योगी पुरुष को जिन्दा जलाने में आया । फिर भी उस महात्मा ने तीव्र जलती अग्नि में से सहजतापूर्वक बाहर निकल कर कलकत्ता के अंग्रेज गवर्नर को आश्चर्यचकित कर दिया था । (१४) गिरनार की गुफा में रहने वाले नागाबाबा महाशिवरात्रि के मेले के अवसर पर अनेक प्रकार के अकल्पनीय योग के दावपेच द्वारा सभी को आश्चर्य मुग्ध करते रहते हैं । आज भी ऐसे बहुत अघोरी गिरनार की गुफा में रहते हैं जो महाशिवरात्रि के मेले के अवसर पर भवनाथ मंदिर के दर्शनार्थ आते हैं। फिर मृगीकुंड में स्नान करने के लिये गिरते हैं। लेकिन वापिस बाहर निकलते हुए दिखाई नहीं देते । (प्रायः सुक्ष्म शरीर करके चले जाने की संभावना है) (१५) ई.स. १८८९-१८९० में वंथली तालुका के सेलरा गाम के एक आहिर के पुत्र को उसके खेत में से आकाश मार्ग द्वारा आये हुए कोई साधु अपने पीछे उठाकर गिरनार पर ले जाते थे । एक गुफा में तीन दिन रखकर वापिस छोड जाते थे। तब पुलिस खोजबीन करती थी । परन्तु उस समय के नवाब रसुलखान ने यह कह कर जांच पड़ताल बंध करवा दी कि अब यह लडका सही सलामत वापिस आ गया है । इसलिए उन साधुओं की खोज करने के लिये विशेष गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। (१६) एकबार एक बाबा ने जंगल में कोई रसकूपिका की खोज करके उसमें से रस लेकर एक तुंबडी में भर दिया था। रात में किसी सोनी के वहाँ रूककर दूसरे दिन सवेरे उठकर वह अपने रास्ते चल निकला । सोनी के घर में जहाँ जहाँ तुंबडी में रहे हुए रस के छींटे गिरे थे । वे सभी वस्तुयें सोने की बन गई थी । इस घटना का ख्याल आते ही सोनी ने तात्कालिक उस बाबा को खोजने का प्रयत्न किया । परन्तु उस बाबा का कुछ भी पता नहीं लगा । १०९
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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