SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करके ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करके आत्माराधना में लीन बनी हैं। (४) एक साधक आत्मा गिरनार के अमिझरा पार्श्वनाथ भगवान के तहखाने में साधना करने अनेकबार आते थे, जब एक रात तहखाने (गुफा) में जाप-ध्यान की आराधना में लीन थे और तहखाने (गुफ) का दरवाजा पुजारी बाहर से बंध करके चला गया था । तब आकाशमार्ग से एक दिव्य प्रकाश का पूंज तहखाने (गुफा) में उतरते हुए देखा और थोडी देर बाद उस प्रकाश के पूंज में से दो चारणमुनियों को अवतरित होते हुए देखा । थोडी देर अमिझरा पार्श्वनाथ भगवान की भक्ति की । उसके बाद उन चारणमुनियों को अत्यंत तेजगति से आकाशमार्ग पर गमन करते हुए देखा था । (५) एक महात्मा ने गिरनार की ९९ यात्रा करते करते एक बार एक विशिष्ट गफा में प्रवेश किया । वहाँ अत्यंत शांत. तेजस्वी, हष्टपुष्ट देहधारी, तेज आभावाले एक दिव्य संत के दर्शन किये, और उनके स्वमुख से गिरनार महातीर्थ का अलौकिक माहात्म्य सुना था । राजनगर - अहमदाबाद से एक आराधक परिवार संघ लेकर के गिरनार मंडन श्री नेमिनाथ प्रभुजी को आभूषण चढ़ाने आया । तब अठारह अभिषेक के दिन श्री नेमिनाथ दादा के पूरे मंदिर की छत में से बड़ी बड़ी बूदे टपकती हो उस तरह अमिझरा था । तथा श्री नेमिप्रभु के प्रतिमाजी को तीन बार अंगलूंछणा करने पर भी जब अमिझरना चालु ही रहा। तब सभी को वैसे भीने प्रभुजी की ही पूजा करनी पड़ी थी। (७) गिरनार के ऊपर श्री प्रेमचंदजी की गुफा में बहुत से महात्माओं ने ध्यान किया है। श्री प्रेमचंदजी महाराज योग विद्या में निपुण थे। एक बार वे अपने गुरुभाई श्री कपुरचंदजी को ढूंढने के लिए गिरनार की इस गुफा में आकर रहे थे। श्री कपुरचंदजी महाराज के पास अनेक रूप धारण करने की तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर उडकर जाने की आकाश गामिनी विद्या थी । (८) सं. १९४३ में गिरनार पर एक योगी, एक प्रबुद्ध लेखक को अपनी गुफा का पाषाण का द्वार खोल कर अंदर ले गये। उसके बाद उस लेखक ने अनेकबार उस स्थल पर जा करके द्वार की खोज की, परन्तु वहाँ पर खडक की शिला के अलावा उसे दूसरा कुछ नहीं मिलता । (९) एकबार कुछ आराधक श्री नेमिनाथ दादा के देरासर (मंदिर) के बाहर की धर्मशाला के कमरे में जाप की आराधना कर रहे थे । तब श्री नेमिप्रभु के जिनालय में से लगातार घंटनाद सुनाई दिया था । (१०) कितने ही साध्वीजी भगवंत श्री नेमिनाथ भगवान का मंदिर मांगलिक होने के बाद बाहर रही हुई शासन अधिष्ठायिका १०८
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy