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(१७) महादुःखमय ऐसे संसार में रोग से पीडित कोई मनुष्य आत्महत्या करने के लिए अंबाजी की ढूंक से नीचे गिरा ।
परन्तु नसीब के योग से किसी हरडे के पेड के नजदीक गिरने से वह कुछ समय तक वहीं पडा रहा । तब हरडे के पेड की असर से उसको बार बार शौचादि होने से उसके सभी रोग दूर हो गये । यह बात उसने जुनागढ के उस वक्त के गोरजी लाधाजी जयवंतजी के गुरु को कही । तब उन्होंने भी वह हरडे लाकर के नवाब साहेब की दवाई में उसका उपयोग किया। कुछ ही समय में नवाब साहेब का दीर्घकालीन रोग भी गायब हो जाने से उन्होंने तंदुरस्त
स्वास्थ्य को प्राप्त किया था) (१८) एकबार कुछ यात्री लोग गिरनार में रास्ता भूल गये थे। तब वे किसी योगी की गुफा के पास में आ पहुंचे । योगी
महात्मा ने उनको सांत्वना देकर किसी पेड के पत्ते खाने के लिए दिये । वो पत्ते उनको पापड जैसे लगे और उससे उनकी भूख शांत हो गई । उसके बाद योगी ने उनके ऊपर पट्टे बांधकरके किसी रास्ते पर खुले छोड दिये । तब वे स्वाभाविक ही अपने स्थान पर वापिस पहुच गये थे। दूसरे दिन जब उन यात्रिकों के उस गुफा की खोज की
तब उनको वह स्थान दिखाई नहीं दिया । (१९) एकबार एक लकडहारे ने रतनबाग में किसी बंदर को कल्हाडी मारी । वह कल्हाडी योगानयोग कोई कंड में गिरने
से सोने की हो गई । उस स्थान की खास निशानी रखकर लकडहारा दूसरे दिन वह स्थान ढूंढने लगा । तब अपना
किया हुआ निशान नहीं मिलने से वह रास्ता भूल गया था । (२०) काली देहरी के आगे की पहाडी को 'वाल्मिकी ऋषि की टेकरी' कहते हैं। उस स्थान से आगे जटाशंकर जाने का
रास्ता आता है । उस मार्ग में प्रथम 'पूतलीओं गालों' नाम की जगह आती है, उस स्थान पर चावल के आकार
के पत्थर देखने को मिलते हैं। (२१) गब्बर अथवा गध्धेसिंह का पर्वत पांचवीं ढूंक के नैऋत्य कोने में है। वहाँ शाश्वती प्रतिमायें हैं । परन्तु उसमें कुंज
दुह नामक है झरना उसको 'तांतणीयो धरो' भी कहा जाता है । अगाध होने से उसका कोई पार नहीं आता । इसलिए उन शाश्वती प्रतिमाओं के स्थान तक कोई पहुंच नहीं सकता । यह 'तांतणीयों धरो' बीलखा तरफ जाकर होजत में
मिलता है । (२२) गब्बर और दातार के पर्वत के बीच नवनाथ, ८४ सिद्ध की पहाडी है । जिसको अभी 'टगटगीआ का डुंगर' कहते
हैं। इस टगटगीआ के डुंगर से रत्नेसर और वहाँ से काली के मुकाम पर जाया जाता है । इस पर्वत पर पहले बहुत से अघोरी रहते थे ।
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