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महाराज साहेब के ज्येष्ठ पूज्यों की प्रतिकृति तथा चरण पादुका बिराजमान हैं।
समवसरण के पीछे नीचे गुफा में श्री नेमिनाथ परमात्मा की अत्यन्त मनमोहक प्रतिमा [२१ इंच] बिराजमान है । जहाँ अनेक महात्माओं ने कई दिनों तक अट्ठम आदि तपश्चर्या सहित विशिष्ट जाप की आराधनायें की हैं और बार-बार आराधना करने आते हैं।
प.पू.आ. हिमांशुसूरि महाराज साहेब द्वारा प्रेरित 'श्री सहसावन कल्याणकभूमि तीर्थोद्धार समिति'-जूनागढ़ द्वारा समवसरण मंदिर का निर्माण किया गया है। यहाँ विशिष्ट आराधना करने की भावनावाले पुण्यशालियों के लिए धर्मशाला की व्यवस्था भी इसी समिति के द्वारा संचालित है। पूर्व संमति पूर्वक आनेवाले यहाँ रात्रि विश्राम कर सकते हैं। भोजन-आयंबिल की व्यवस्था भी उपलब्ध है । इस संकुल में दर्शनार्थ आनेवाले सर्व साधर्मिक बंधुओं को भाता दिया जाता है।
इस समवसरण मंदिर से बाहर निकलकर सीढियाँ उतरते ही दायी ओर इस मंदिर के प्रेरणादाता प.पू.आ. हिमांशुसूरि महाराज साहेब की अंतिम संस्कार भूमि आती है जहाँ पूज्यश्री की पादुका तथा प्रतिकृति बिराजमान है।
इस अंतिमसंस्कार भूमि से ६० सीढियाँ उतरते ही दो रस्ते आते हैं, जिसमें बायीं ओर के मार्ग से ३००० सीढियाँ उतरकर लगभग आधा किलोमीटर चलने पर तलहटी आती है। दायी ओर १० सीढियाँ उतरते ही बायीं ओर बुगदा की धर्मशाळा आती है जहाँ अनेक महात्माओं ने स्थिरता करके ६८ उपवास, मासक्षमण आदि उग्र तपश्चर्या की है। वहाँ से ३० सीढियाँ उतरते ही बायीं ओर श्री नेमिनाथ परमात्मा की केवलज्ञान कल्याणक की प्राचीन देवकुलिका आती है।
श्री नेमिनाथ परमात्मा की केवलज्ञान कल्याणक की प्राचीन देहरी :
इस केवलज्ञान कल्याणक की देहरी के मध्य में श्री नेमिनाथ प्रभु की चरण पादुका तथा उसके पास उनके भाई मुनि श्री रहनेमिजी तथा साध्वी राजमतीश्रीजी की पादुकायें बिराजमान है। इस देहरी से ३० सीढियाँ उतरते ही बायी ओर श्री नेमिप्रभु की दीक्षा कल्याणक की प्राचीन देहरी आती है।
श्री नेमिप्रभु की दीक्षा कल्याणक की प्राचीन देहरी :
यह दीक्षा कल्याणक की प्राचीन देहरी एक विशाल चौक में स्थित है। इसमें श्री नेमिनाथ प्रभु की श्यामवर्णी चरण
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