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स्पर्शना करने के लिए विकट पगदंडी के मार्ग से आते थे। उस समय कोई भी यात्रिक इस भूमि की स्पर्शना करने का साहस नहीं करता था । इसलिए आचार्य भगवंत के मन में विचार आया कि "यदि इसी तरह इस कल्याणक भूमि की उपेक्षा होगी तो इस ऐतिहासिक स्थान की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी" ! बस इस समय कोई दिव्यप्रेरणा के बल से महात्मा ने विचार किया कि प्राचीन देवकुलिका और मात्र पादुका के दर्शन करने के लिए कोई भी यात्रिक उत्सुक नही बनेगा । इसी कारण से उन्हें पुष्ट आलंबन मिले इसलिए दीक्षा कल्याणक और केवलज्ञान कल्याणक के प्रतीक के रूप में यदि दो जिनालयों का निर्माण हो तो अनेक भाविक जीवों को इस भूमि के दर्शन-पूजन-स्पर्शन का लाभ मिल सकता है। उसके बाद उनके अथक पुरुषार्थ से सहसावन में जगह प्राप्त कर केवलज्ञान कल्याणक के प्रतीक के रूप में समवसरण मंदिर का निर्माण हुआ । * समवसरण मंदिर : [श्री नेमिनाथ भगवान - ३५ इंच]
इस समवसरण मंदिर में चतुर्मुखजी के मूलनायक श्यामवर्णी संप्रतिकालीन श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा बिराजमान है। इन चतुर्मुखजी प्रभुजी की प्रतिष्ठा वि.सं. २०४० चैत्र वद - पांचम के दिन प.पू. आ. हिमांशुसूरि महाराज साहेब, प.पू.आ. नररत्नसूरि महाराज साहेब, प.पू. आ. कलापूर्णसूरि महाराज साहेब तथा प.पू. पं. हेमचन्द्र विजयजी गणिवर्य आदि विशाल साधुसाध्वी समुदाय की पावन निश्रा में हुई थी।
इस समवसरण जिनालय में प्रवेश करते ही सामने समवसरण की सीढियाँ को देखकर साक्षात प्रभु के समवसरण में ही प्रवेश कर रहे हों, ऐसे भाव प्रगट होते हैं। समवसरण की सीढियाँ चढकर ऊपर जाते ही मध्य में अशोक वृक्ष के नीचे चतुर्मुखजी प्रभुजी के बिंबों को निहालकर हृदय पुलकित हो जाता है। इस समवसरण के सामने रंगमंडप में अतीत चौवीशी के दस तीर्थकर सहित श्यामवर्णी श्री नेमिनाथ परमात्मा तथा उनके सामने अनागत चौवीशी के चौबीस तीर्थकर सहित पीतवर्णी श्री पद्मनाभ परमात्मा की नयनरम्य प्रतिमायें बिराजमान हैं। अन्य रंगमंडपों में जीवित स्वामी श्री नेमिनाथ भगवान तथा सिद्धात्मा श्री रहनेमिजी की प्रतिमायें, विशिष्ट कलाकृति युक्त काष्ठ का समवसरण मंदिर तथा प्रत्येक रंगमंडप में श्री नेमिनाथ प्रभु के ६६ गणधर भगवंतों की प्रतिमायें स्थापित की गयी है।
इसके सिवाय जिनालय में प्रवेश करते ही रंगमंडप में बायीं ओर श्री नेमिनाथ भगवान के शासन अधिष्ठायक श्री गोमेध यक्ष तथा दायीं ओर शासन अधिष्ठायिका श्री अंबिका देवी की प्रतिमायें बिराजमान हैं। अन्य रंगमंडपों में प.पू.आ. हिमांशुसूरि
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