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________________ है । कोई रस्ता भूल न जाय इसलिए जगह-जगह पर सिंदूर की निशानियाँ बनायी गयी हैं। मार्ग में काटें और पत्थर होने से कोई हिम्मतवान व्यक्ति ही कालिकाट्क तक पहुंचने में समर्थ होता है। पूर्व में तो ऐसा कहा जाता था कि कालिका ट्रंक में दो व्यक्ति जाए तो एक व्यक्ति ही वापिस जीवित लौटता है । कालिका की ढूंक पर कालिका माता का स्थान और ऊपर त्रिशूल कमंडलकुंड से पांडवगुफा में जाने का मार्ग भी मिलता है। यह गुफा पाटणवाव तक निकलती है, ऐसा जानने में आया कमंडलकुंड से वापिस गोरखनाथ ढूंक, अंबाजी ढूंक होकर गौमुखी गंगा के पास उत्तर दिशा की तरफ आगे बढ़ते हुए आनंदगुफा, महाकालगुफा, भैरवजप, सेवादास का स्थान और पत्थर चट्टी के स्थान से होकर लगभग १२०० सीढियाँ नीचे उतरते ही सहसावन का विस्तार आता है। * सहसावन (सहस्रामवन): [श्री नेमिप्रभु की दीक्षा-केवलज्ञान भूमि] सहसावन में बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ परमात्मा की दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए है । सहसावन को 'सहस्रामवन' कहा जाता है क्योंकि यहाँ सहस्र अर्थात् हजारों आम के घटादार वृक्ष हैं। चारो तरफ आम से घिरे इस स्थान की रमणीयता तन-मन को अनोखी शीतलता का अनुभव कराती है। आज भी मोर के मधुर केकारव और कोयल के टहूंकार से गुंजती यह भूमि भी नेमिप्रभु के दीक्षा अवसर के वैराग्यरस की सुवास से महकती और कैवल्यलक्ष्मी की प्राप्ति के बाद समवसरण में बैठकर देशना देते हुए प्रभु की पैंतीस अतिशययुक्त वाणी के शब्दों से सदा गुंजती रहती हैं। इस सहसावन में श्री नेमिनाथ प्रभु की दीक्षा कल्याणक तथा केवलज्ञान कल्याणक की भूमि के स्थान पर प्राचीन देव कुलिकाओं में प्रभुजी की पादुकायें पधरायी हुई हैं। उसमें केवलज्ञान कल्याणक की देवकलिका में तो श्री रहनेमिजी तथा साध्वी राजीमतीश्रीजी यहाँ से मोक्ष में गए थे इसलिए उनकी पादुकायें भी बिराजमान हैं। लगभग ४०-४५ वर्ष पूर्व तपस्वी सम्राट प.पू. आ. हिमांशुसूरि महाराज साहेब पहली ट्रॅक से इस कल्याणक भूमि की १०३
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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