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(८) गुमास्ता का जिनालय : [श्री संभवनाथ भगवान - १९ इंच]
वस्तपाल-तेजपाल के जिनालय के पीछे के प्रांगण में उनकी माता का जिनालय है। जो 'गुमास्ता का जिनालय' नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर के मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान हैं। वस्तुपाल की माता कुमारदेवी के नाम से यह मंदिर बनवाया गया है इसलिए यह 'वस्तुपाल की माता का जिनालय' के रूप में पहचाना जाता है। कच्छ-मांडवी के गुलाबशाह ने यह जिनालय बंधवाया था. इस कारण से 'गलाबशाह मंदिर' के नाम से भी पहचाना जाता है। [गुलाब शाह के नाम का अपभ्रंश होने से कालक्रम से गुमास्ता के नाम से प्रचलित होने का अनुमान लगाया जाता है ।] (९) संप्रतिराजा की ढूंक : [श्री नेमिनाथ भगवान - ५७ इंच]
वस्तुपाल-तेजपाल के जिनालय से बाहर निकलकर उत्तर दिशा की तरफ संप्रतिराजा की ट्रॅक आती है। श्री चन्द्रगुप्तमौर्य के वंश में हुए अशोक के पौत्र मगधसम्राट् संप्रति महाराजा हुए थे। उन्होंने आचार्य सुहस्तिसूरि महाराज साहेब के सदुपदेश से जैनधर्म का स्वीकार किया था । वह लगभग वि.सं. २२६ के आसपास उज्जैन नगरी में राज्य करता था। उन्होंने सवालाख जिनालय और सवा करोड जिनप्रतिमायें भरवायी थीं। संप्रतिमहाराजा के बंधवाए गए इस जिनालय में मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान बिराजमान हैं। यह प्रतिमा वि.सं. १५१९ में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख प्रतिमा की गद्दी में मिलता है। मूलनायक के गर्भगृह के बाहर के झरोखें में देवी की प्रतिमा है जिसे कुछ ग्रन्थों में चक्रेश्वरी देवी और कुछ ग्रंथों में अंबिकादेवी मानकर अलगअलग समय में उस झरोखें पर उनके नाम लिखे गए हैं। वास्तव में हंसवाहिनी, हाथ में वीणा और पोथी युक्त होने से यह प्रतिमा सरस्वती देवी की है, ऐसा स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है। इस देवी की प्रतिमा के सामने के झरोखें में श्री नेमिनाथ भगवान के शासन अधिष्ठायक गोमेध यक्ष की प्रतिमा बिराजमान है। इसके सिवाय रंगमंडप में ५४ इंच के खडे काउस्सग्गवाली प्रतिमा सहित अन्य २४ नयनरम्य प्रतिमायें भी बिराजमान हैं। इस रंगमंडप के बाहर भी दूसरा बडा रंगमंडप बनवाया गया है।
इस जिनालय का प्रवेश द्वार दो मंजिल का हो ऐसा लगता है। उसका पश्चिम सन्मुख द्वार होते हुए भी वर्तमान में इस जिनालय का दक्षिणाभिमुख प्रवेश द्वार ही खुला रखा गया है। इस जिनालय के बाहर की दीवारें अत्यन्त मनोहर कारीगरी से भरपूर हैं। शिल्पकला के रसिकों को यह कारीगरी बहुत आनंददायक लगती हैं। इस तरह की विविध आकृतियां प्राथमिक कक्षा के शिल्पकारों को शिल्पकला में आलंबनकारी हैं।