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इस जिनालय के दर्शन करके बाहर निकलकर मुख्यमार्ग पर उत्तरदिशा की तरफ आगे जाने पर दायीं तरफ वस्तुपाल तेजपाल की टूंक आती है ।
(७) वस्तुपाल तेजपाल का जिनालय : [ श्री शामला पार्श्वनाथ
४३ इंच]
इस जिनालय में एक साथ परस्पर जुड़े हुए तीन मंदिर है। यह जिनालय गुर्जर देश के मंत्रीश्वर वस्तुपाल - तेजपाल के द्वारा वि.सं. १२३२ से १२४२ के समय में बंधवाया गया। जिसमें अभी मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान बिराजमान हैं। इसकी प्रतिष्ठा वि.सं. १३०६ वैशाख सुद ३ शनिवार के दिन आ. प्रद्युम्नसूरि महाराज साहेब की मुख्य परंपरा में श्री देवसूरि के शिष्य श्री जयानंद महाराज साहेब ने की थी। इस जिनालय के मध्य के मंदिर का रंगमंडप २९ १/२ फुट चौडा और ५३ फुट लंबा है, तथा आसपास के दोनों जिनालय के रंगमंडप ३८५, फुट समचतुष्ट है 1
इस जिनालय में लगभग ६ से ७ शिलालेख हैं जो वि. सं. १२८८ फागण सुद १० बुधवार के हैं। जिनमें से ४ लेखों में वस्तुपाल और उनकी पत्नी ललिता देवी के श्रेयार्थ अजितनाथ आदि जिनालय बंधवाये और दो मंदिर द्वितीय पत्नी सोखुकादेवी के श्रेयार्थ बंधवाने का उल्लेख है । अन्य लेखों में भी उन्होंने अलग-अलग तीर्थंकरों की प्रतिमा तथा चरण पादुका आदि पधराने का उल्लेख है ।
मुख्य जिनालय की बायीं ओर के जिनालय में समचतुष्ठ समवसरण में चतुर्मुखी भगवान बिराजमान हैं, जिनमें तीन प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ भगवान की वि.सं. १५५६ के साल की एवं चौथी श्री चंदप्रभस्वामी की प्रतिमा वि.सं. १४८५ की साल के उल्लेखवाली है।
दायीं तरफ के जिनालय में गोलमेरु के ऊपर चतुर्मुखी भगवान बिराजमान हैं जिनमें पश्चिमाभिमुख श्री सुपार्श्वनाथ, उत्तर और पूर्वाभिमुख श्री नेमिनाथ भगवान । ये तीनों प्रतिमाजी वि.सं. १५४६ के साल की हैं। दक्षिणाभिमुख श्री चंद्रप्रभस्वामी की प्रतिमा बिराजमान है। इस मेरु की रचना पीले रंग के पाषाण से की गयी है ।
इन जिनालयों की कारीगरी और कलाकृतियुक्त कमानवाले स्तंभ, जिनप्रतिमा, विविध दृश्य तथा कुंभादि की आकृति आनंदकारी है। चतुर्मुखी जिनालयों की विशालता तथा सजावट नयनरम्य है।
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