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________________ यह गजपद कुंड, 'गजेन्द्रपद कुंड' तथा 'हाथी पादुका कुंड' के नाम से भी पहचाना जाता है। इस कुंड का उल्लेख १३ से १५वीं शतक तक रचे गए गिरनार संबंधी लगभग सभी जैन साहित्य में मिलता है। इसके उपरांत 'स्कन्दपुराण' अंतर्गत 'प्रभासखंड' में भी इसका उल्लेख मिलता है। इस कुंड के एक स्तंभ में जिनप्रतिमा खोदी हुई है । श्री शत्रुंजय माहात्म्य के अनुसार जब श्री भरतचक्रवर्ती और गणधरभगवंत आदि प्रतिष्ठा के लिए गिरनार आये, तब श्री नेमिजिन प्रासाद की प्रतिष्ठा के लिए इन्द्र महाराजा भी ऐरावत हाथी पर आरूढ होकर आए। उस समय प्रभु के स्नात्राभिषेक के लिए ऐरावत हाथी के द्वार भूमि पर एक पाँव दबवाकर कुंड बनाया गया था। जिसमें तीनों जगत की विशिष्ट नदियों का जल आया था। उस विशिष्ट जल से इन्द्र महाराजा ने भक्ति के लिए प्रभु के अभिषेक करवाए थे । इस अत्यन्त प्रभावक जल के पान तथा स्नान से अनेक रोग नाश होते हैं। जैसे खांसी, श्वास, क्षय, कोढ, जलोदर जैसे भयंकर रोग भी नाश होते हैं। इस कुंड के जल से स्नान करके जो भगवान का अभिषेक करता है, उसके कर्ममल दूर होते हैं और परंपरा से मुक्तिपद को प्राप्त करता है । इस कुंड में १४ हजार नदियों का प्रवाह देवों के प्रभाव से आता है, इसलिए यह बहुत पवित्र कुंड है। इस कुंड का पानी मीठा और घी के समान निर्मल है। वि.सं. १२१५ के शिलालेख के अनुसार इस कुंड के चारो तरफ दीवार बांधकर उसमें अंबिका और अन्य मूर्तियाँ को स्थापित करने का उल्लेख मिलता है । इस गजपद कुंड के दर्शन करके कुमारपाल की ट्रंक की खिड़की से अंदर प्रवेश कर श्री नेमिनाथजी की ट्रंक से बाहर निकलकर पुन: ऊपरकोट (देव कोट) के मुख्य द्वार के पास के रास्ते पर आ सकते हैं। इस मुख्य द्वार के सामने 'मनोहरभुवनवाली' धर्मशाला के कमरों के पास से सुरजकुंड होकर श्री 'मानसंग भोजराज' के जिनालय में जा सकते हैं । (६) मानसंग भोजराज का जिनालय : [ श्री संभवनाथ भगवान २५ इंच] यह जिनालय कच्छ- मांडवी के वीशा ओसवाल शा. मानसंग भोजराज ने बंधवाया था। इसमें मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान की सुंदर प्रतिमा बिराजमान है। इस जिनालय में जाने से पहले मार्ग में आनेवाला सुरजकुंड भी शा. मानसंग ने करवाया था। जूनागढ गाँव में आदीश्वर भगवान के जिनालय की प्रतिष्ठा भी उन्होने वि.सं. १९०१ में करवायी थी । ९४
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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