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________________ रंगमंडप आदि स्थानों की टूटी हुई पूतलियों को निकालकर इस वाव के आसपास रखा गया था । उत्तरदिशा के तरफ की खिड़की से बाहर निकलने ही भीमकुंड आता है। भीमकुंड : यह भीमकुंड बहुत विशाल है . यह लगभग ७० फुट लंबा और ५० फुट चौडा है। यह कुंड १५ वें शतक में बना हो, ऐसा लगता है । ग्रीष्मऋतु की सख्त गर्मी में भी इस कुंड का पानी शीतल रहता है । इस कुंड की एक दीवार के एक पाषाण में श्री जिनप्रतिमा तथा हाथ जोडकर खड़े हुए श्रावक-श्राविकाओं की प्रतिमा खोदी हुई दिखाई देती हैं। पश्चिम दिशा की तरफ कुंड के किनारे से आगे बढ़ते हुए, उत्तराभिमुख नीचे उतरने की सीढियाँ आती हैं। ये सीढियाँ पूरी होते ही नागीमाता की देरी नामक एक देवकुलिका आती है। जिसमें सामने ही नीचे के भाग में एक पाषाण का पिंड दिखता है। तथा बायें हाथ की दीवार के झरोखें में श्री नेमिनाथ परमात्मा तथा दायें हाथ की दीवार के झरोखें में श्री नेमिप्रभु के शासन अधिष्ठायिका अंबिका देवी की मूर्ति बिराजमान है। इस देवकुलिका के चौक की छत के ऊपर अधुरे घुम्मट को देखकर, इस देवकुलिका के निर्माण का कार्य किसी कारणवश अधूरा रह गया है, ऐसा लगता है। वहां से आगे श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के जिनालय तक जाने का कच्चा रास्ता आता है। (५) श्री चन्द्रप्रभस्वामी का जिनालय : [श्री चन्द्रप्रभस्वामी - १६ इंच] श्री चन्द्रप्रभस्वामी का यह जिनालय एकांत में आया है। इस जिनालय में श्री चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.सं. १७०१ में हुई। इस जिनालय की छत अनेक कलाकृतियों से सुशोभित है। जिसमें चारों तरफ रंगीन पूतलियां स्थापित की गयी हैं। इस जिनालय की उत्तरदिशा से ३०-३५ सीढियाँ नीचे उतरते ही गजपद कुंड आता है। "स्पृष्ट्वा शत्रुजयं तीर्थं नत्वा रैवतकाचलम् स्नात्वा गजपदे कुंडे पुनर्जन्म न विद्यते" गजपद कुंड: श्री शत्रुजय तीर्थ की स्पर्शना करके, श्री रैवतगिरि को नमस्कार करके, गजपद कुंड में स्नान करनेवाले को पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता है।
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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