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(१०) ज्ञानवाव का जिनालय : [श्री संभवनाथ - १६ इंच]
संप्रतिराजा के जिनालय के पास उत्तरदिशा की तरफ नीचे उतरते हए पास में ही दायें हाथ की तरफ के द्वार में प्रवेश करते ही प्रथम मैदान में ज्ञानवाव हैं । इस चौक में उत्तरदिशा की तरफ के द्वार से अंदर प्रवेश करते ही चतुर्मुखजी का जिनालय आता है जो श्री संभवनाथ भगवान के नाम से पहचाना जाता है एवं जिसमें मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान है ।
इस जिनालय से नीचे उतरकर भीमकुंड एवं श्री चंद्रप्रभ स्वामी के जिनालय में जा सकते हैं। भीमकुंड के पीछे उत्तरदिशा में अतीत काल के चौवीश तीर्थकर परमात्मा की प्रतिमा बिराजमान करने के लिए चौवीश देवकुलिका बनाने का कार्य शुरु हुआ होगा, परन्तु किसी कारणवश वह कार्य बंद होने से कार्य अधूरा पड़ा है।
ज्ञानवाव जिनालय के दर्शन करके दक्षिणदिशा की तरफ ऊपर चढकर पुनः संप्रतिराजा के जिनालय के पास से पूर्वदिशा में लगभग ५० सीढियाँ चढने पर कोट का दरवाजा आता है। उसमें से बाहर निकलते ही सामने 'लेवल ३१०० फीट' एवं 'बे माइल' ऐसा पत्थर में खोदा हुआ है । वहाँ से आगे लगभग ५० सीढियाँ चढ़ने पर बायीं तरफ 'शेठ धरमचंद हेमचंद' का जिनालय आता है। (११) शेठ धरमचंद हेमचंद का जिनालय : [श्री शांतिनाथ भगवान - २९ इंच]
उपरकोट [देवकोट] के दरवाजे से बाहर निकलने के बाद सर्व प्रथम 'शेठ धरमचंद हेमचंद' का जिनालय आता है। जिसे 'खाडा का जिनालय' भी कहा जाता है। इस जिनालय में मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान हैं। मांगरोल गाँव के दशाश्रीमाली वणिक शेठ श्री धरमचंद हेमचंद द्वारा वि.सं. १९३२ में इस जिनालय की मरम्मत व शोभावृद्धि का कार्य किया गया । (१२) मल्लवाला जिनालय : [श्री शांतिनाथ भगवान - २१ इंच]
'शेठ धरमचंद हेमचंद' के जिनालय से आगे लगभग ३५ से ४० सीढियाँ चढते हुए दायीं तरफ 'मल्लवाला जिनालय' आता है। इसमें मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान हैं। इसका उद्धार जोरावरमल्लजी के द्वारा हुआ था, इसलिए यह जिनालय मल्लवाला जिनालय के नाम से पहचाना जाता है।