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७६ ] श्रीप्रवचनसारटोका। सूत तथा. मोतीका शुक्ल गुणके साथ तन्मयपना है अर्थात प्रदेशोंका अभिन्नपना या एकपना है तैसे मुक आत्मा नामके पदार्थमें जो कोई शुद्ध सत्ता गुण है वह प्रदेशोंके अभेद होते हुए इस तरह कहा जाता है । सत्ता लक्षण परमात्मा पदार्थ, सत्ता लक्षण उसके केवलज्ञानादि गुण, सत्तालक्षण सिद्ध पर्याय । जो कोई परमात्म पदार्थ व केवलज्ञानादि गुण व सिद्ध पर्याय है इन तीनोके साथ शुद्ध सत्ता गुण एक कहा जाता है यह तद्भाव या एकताका लक्षण है। तदभावका प्रयोजन यह है कि परमात्मा पढार्थ, केवलज्ञानादि गुण, सिद्धत्व पर्याय इन तीनोका शुद्ध सत्ता नामा गुणके साथ संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजनकी अपेक्षा भेद होते हुए भी प्रदेशोकी अपेक्षा तन्मयपना ही है अर्थात् एकता ही है सत्ता गुण इन तीनोंमे व्यापक है।
निश्चय करके जो इस तदभाव या एकताका संज्ञा संख्या आदिकी अपेक्षासे परस्पर अभाव है उसको तदभाव या उस एकताका अभाव या अतद्माव या अन्यत्व कहते हैं । इस अन्यत्त्वका संझा लक्षण प्रयोजनादिकी अपेक्षा जो स्वरूप है उसको दृष्टांत देकर बताते हैं।
जैसे मोतीके हारमे जो कोई शुक्ल गुण है उसका वाचक जो शुक्ल नामका दो अक्षरका शब्द है उस शब्दसे हार, या सूत्र या मोती कोई वाच्य नहीं है अर्थात् शुक्ल शब्दसे हार, सूत्र या मोतीका ज्ञान नहीं होता है केवल सफेद गुणका ज्ञान होता है इसी तरह हार, सूत या मोती शब्दोंसे शुक्ल गुण नहीं कहा जाता है। इस तरह हार, सूत तथा मोतीके साथ शुक्ल गुणका प्रदेशोंकी