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द्वितीय खंड।
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अपेक्षा अभेद या एकत्त्व होनेपर भी जो सज्ञा आदिका भेद है वह भेद पहले कहे हुए तदभाव या तन्मयपनेका अभावरूप अतद्भाव है या अन्यत्त्व है अर्थात् सज्ञा लक्षण प्रयोजन आदिका भेद है ।। तैसे मुक्त जीवमे जो कोई शुद्ध सत्तागुण है उसको कहनेवाले सत्ता शब्दसे मुक्त जीव नहीं कहा जाता न केवलज्ञानादि गुण कहे जाते. न सिद्ध पर्याय कही जाती है । और न मुक्त जीव केवलज्ञानादि गुण या सिद्ध पर्यायसे शुद्ध सत्ता गुण कहा जाता है। इस तरह सत्ता गुणका मुक्त जीवादिके साथ परस्पर प्रदेशभेद न होते हुए भी. जो कोई संझा आदिकृत भेद है वह भेद उस पूर्वमे कटे हुए तद्भाव या तन्मयपनेके लक्षणसे रहित अतभाव या अन्यत्त्व कहा जाता है । अर्थात् संज्ञा लक्षण प्रयोजन आदि कत भेद है ऐसा अर्थ, है। जैसे यहां शुद्धात्मामें शुद्ध सत्ता गुणके साथ अभेद स्थापित. किया गया तैसे ही यथासभव सर्व द्रव्योंमें जानना चाहिये यह अभिप्राय है-अर्थात् आत्माका और सत्ताका प्रदेशकी अपेक्षा अभेद है, मात्र संज्ञादि स्वरूपकी अपेक्षा भेट या अन्यत्व है। ऐसा ही अन्य द्रव्योंमें समझना।
भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने खरूपकी अपेक्षा गुण गुणीका अन्यत्व या भिन्नपना है इसको अच्छी तरह दर्शा दिया है। द्रव्य गुण पर्यायवान है सत्ता इनमें व्यापक है इससे हम ऐसा कह सक्ते हैं कि सत्तारूप द्रव्य, सत्तारूप गुण, सत्तारूप पर्याय । जो. प्रदेश द्रव्यकी सत्ताके है वे ही प्रदेश गुण और पर्यायकी सत्ताके हैं इस तरह सत्ताकी एकता द्रव्य गुण पर्यायके साथ है परन्तु जब गुण और गुणीको भेद. करके विचारते है तो सत्ताका द्रव्यगुण