SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ VA द्वितीय खंड। [७५ एक तथा स्वरूपापेक्षा भिन्न २ जानकर भावनाके समय भेदरूप. तथा एकरूप विचार करना इसी तरह अपने आत्माके भी खरूपको विचार करना इसी विचारकी प्रणालीसे खखरूपमें अनुभव प्राप्त होगा यही स्वानुभव रत्नत्रयमई मोक्षमार्ग है और निराकुल अतीन्द्रिय आनदका देनेवाला है। तात्पर्य यह है कि आत्मद्रव्यका सच्चा खरूप समझकर उसीके मननसे अपना हित करना चाहिये । उत्थानिका-आगे अन्यत्त्वका विशेष विस्तारके साथ कथन, करते है सहब सच्च गुणो सच्चेव य पजभोत्ति वित्थारो। जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो भतभावो ॥१६॥ सदद्रव्यं सञ्चगुणः सञ्चैव च पर्याय इति विस्तारः । यः खलु तस्याभावः स तदभावेऽनद्भाव, ॥ १६ ॥ अन्वय महित सामान्यार्थ-(सहव्वं) सत्तारूप द्रव्य है । (सच्च गुणो) और सत्तारूप गुण है, ( सच्चेव पन्जओति ) तथा सत्तारूप पर्याय है ऐसा (वित्यारो) सत्ताका विस्तार है। (खल ) निश्चय करके ( तस्स-अभावो ) जो उस सत्ताका परस्पर अभाव, ' है (सो तदभावो) वह उसका अभावरूप (अतभावो) अन्यत्व है। विशेपाथ-जैसे मोतीके हारमे सत्ता गुणकी जगहपर जो उसमें सफेदीका गुण है सो प्रदेशोंकी अपेक्षा एक रूप है नौ भी उसको भेद करके इस तरह कहते हैं कि यह सफेद हार है, यह सफेढ मूत है, यह सफेद मोती है तथा जो हार सूत या मोती है इन तीनोके साथ प्रदेशोका भेद न होते हुए सफेद गुण कहा जाता है यह एकता या तन्मयपनाका लक्षण है। अर्थात् हार
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy