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________________ ७४] श्रीप्रवचनसारटीका। भावार्थ-द्रव्य और पर्यायमें संज्ञाके विशेषसे, संख्याके विशेषसे, अपने २ लक्षणके विशेषसे तथा अपने २ प्रयोजनके विशेपसे एकता नहीं है-अनेकता है जैसे वृक्ष और उसके पत्रोंमें विशेषता है । यद्यपि वृक्ष और उसके पत्तें एक ही हैं तथापि दोनोंक नाममें फर्क है, संख्यामें अंतर है, वृक्ष एक है, पत्ते अनेक है । वृक्षका लक्षण मूल, धड, शाखा, पत्रादि सहित फलना है। पत्तोका लक्षण शाखाको शोभितकर हरेपने आदिको प्रगट करना है । वृक्षका प्रयोजन फल फूल व छाया देना है। पत्रोका प्रयोजन वृक्षको पवन देना व उसको फलनेमे सहाई होना है। इस तरह द्रव्यमें गुण या पर्यायसे अनेकता है। द्रव्य और पर्यायका नाम अलगर है। द्रव्य एक है, पयायें अनेक हैं। यह संख्याका भेद है। द्रव्यका लक्षण गुण पर्यायवान है। पर्यायका लक्षण तद्भाव परिणाम है । द्रव्यका प्रयोजन एकपना या अन्यपनेका ज्ञान कराना है। पर्यायका प्रयोजन अनेकपना जुदापना बताना है। यहां श्लोकमे आदि शब्द है उससे मतलब यह है कि काल अपेक्षा भेद है द्रव्य त्रिकालगोचर है जब कि पर्याय वर्तमानकालगोचर है। द्रव्य और पर्यायका भिन्न २ प्रतिभास है यह प्रतिमास भेद है। इस तरह द्रव्य और गुण या पर्याय प्रदेशोंके अपेक्षा एक हैं किन्तु स्वरूपादिकी अपेक्षा अनेक रूप हैं। दोनोमे एकता और अन्यत्त्व भिन्न २ अपेक्षासे है। न सर्वथा एक हैं न सर्वथा भिन्न २ हैं। ___ स्याहादसे ही वस्तुका यथार्थ खरूप मालूम होताहै। वृत्तिकारके अनुसार मुक्तात्मा द्रव्यको और उसकी स्वरूप सत्ताको प्रदेशापेक्षा
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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