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________________ द्वितीय खंड। [७३ करना है जैसे जीवका संसारीसे मुक्त होना, व पुद्गलका मिट्टीसे घड़ा ' बनना, सोनेसे आभूषण बनना, इंटोंसे मकान बनना, सत्ता गुणका प्रयोजन नित्य पदार्थको बनाए रखना है। इस तरह खरूप भेदसे अन्यत्त्व नामका मेद है तथापि प्रदेश 'भेद नहीं है इस तरह द्रव्यका सत्ता के साथ किसी अपेक्षा भेद हैव 'किसी अपेक्षा अभेद है। सर्वथा अभेद होनेपर भिन्न २ नाम व काम नहीं हो सक्त तथा सर्वथा भेद होनेपर दोनोका ही अभाव हो जावेगा जैसा पहले कह चुके है । सत्ताके विना द्रव्य नहीं ठहर सक्ता 'तथा द्रव्यके विना सत्ता नहीं रह सक्ती | जैसे द्रव्य और गुणका प्रदेशमेट नहीं है किंतु स्वरूपभेद है वैसे द्रव्य और पर्यायका प्रदेश भेद नहीं है किंतु खरूप भेट है ऐसा ही खामी समन्तभद्राचार्थने आप्तमीमांसामें कहा है द्रव्यपर्यायोरेक्य तयोरव्यतितः । परिणामविशेपाच, शक्तिमन्छक्ति भावतः ॥ ७१० ॥ भावार्थ-द्रव्य और पर्यायकी एकता है क्योकि दोनों भिन्नर नही मिलते। जहां द्रव्य है वहां पर्याय है । परिणामका विशेष है सो पर्याय है। परिणाम द्रव्यमें होता है, इस कारण भी एकता है, शक्तिमान द्रव्य है। जिसमें शक्तियें पाई जावें वह द्रव्य है। शक्तिये उसके गुण या पर्याय हैं इससे भी एकता है जैसे धीमें चिकनई, पुष्ठता आदि शक्तिये हैं । इस श्लोकमे द्रव्यकी गुण या गुणविकार ‘पर्यायके साथ एकता सिद्ध कीगई । आगे अनेकता बताते हैं सशासंख्याविशेषाञ्च स्वलक्षणविशेषतः । प्रयोजनादि भेदाच्च तनानात्व न सर्वथा ॥ ७२ ॥
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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