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५२] श्रीप्रवचनसारटोका। अन्य गुण न रखते हो वे गुण हैं-दोनोंका तादात्म्य सम्बन्ध है. जो कभी छूट नहीं सक्ता । ऐसा होनेपर भी स्वरूपकी अपेक्षा द्रव्यका स्वरूप गुणके स्वरूपसे एक नहीं है । संजादिकी अपेक्षा भेद है जैसे वस्त्र द्रव्यका शुक्ल गुण है । वस्त्र और शुल्लपनेका प्रदेशभेद नहीं है तथापि स्वरूपभेद है-संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजनसे भिन्नता है । वस्त्रकी संज्ञा वस्त्र है। शुक्ल गुणकी संज्ञा शुक्ल है । दोनोके नाम अलग २ हैं। वस्त्र किसी अपेक्षा एक व अनेक तंतुओकी अपेक्षा अनेक हैं। शुक्ल गुण एक है यद्यपि अशोकी अपेक्षा अनेक शुक्ल गुण भी होसक्ता है तथापि परस्पर सख्याकी रीति मिन्न २ है । वस्त्रका लक्षण तागोका समूह बंधनरूप है। शुक्ल गुणका लक्षण सफेदपनेको झलकाना है। वस्त्रका प्रयोजन शरीरको ढकना है-सर्दी मेटना है, लज्जा दूर करना है जब कि शुक्ल गुणका प्रयोजन उज्वलता रखकर मलीनता दूर रखना है । वस्त्रको जव हम आंखोसे देख सक्ते, हाथसे छूसक्ते, नाकसे सूंघ सक्ते, मुंह द्वारा स्वाद लेसक्ते तव शुक्ल गुणको हम केवल आंखसे ही देख सक्ते हैं। इस तरह गुण और गुणीमे स्वरूपकी अपेक्षा भेद होता है इस तरहके भेदको अन्यत्त्व कहते हैं।
यहां द्रव्य गुणी व सत्ता गुणमें पृथकत्व भेद नहीं है मात्र खरूप भेद है इस लिये अन्यत्त्व है। द्रव्य और सत्तामें संज्ञाका भेद है ही। द्रव्य कोई एक कोई अनेक हैं जब कि सत्ता गुण एक है यह सख्या भेद है। द्रव्यका लक्षण गुण पर्यायवान हैं या उत्पाद व्यय प्रौव्यरूप है । सत्ता गुणका लक्षण अस्तित्व रखना है । द्रयका प्रयोनन किसी खास अर्थ क्रियाको