SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खंड | [ ६५ .. परमात्माके गुणोकी अवस्थामें हो गईं। जैसे ज्ञान गुणमे मति | श्रुतादिसे पलटकर केवलज्ञान पर्यायका होना, दर्शनगुण में चक्षु | अचक्षु आदिको छोडकर केवल दर्शन पर्यायका होना, वीर्यगुणमें अल्प वीर्यको पलटकर अनत वीर्यरूप होना, सुख गुणमें परोक्ष सुखको छोडकर प्रत्यक्ष अनन्त सुखकी पर्यायमे होना इत्यादि । जिससे मतलब यह सिद्ध होता है कि जैसे अतरात्मा जीवकी पर्याय समुदायसे एक है तथापि अनेक गुणोकी अपेक्षा अनेक है ऐसे परमात्माजी की पर्याय समुदायसे एक है तथापि अनेक गुणोंकी अपेक्षा अनेक है । और जैसे परमात्मा द्रव्यकी पर्याव जीव द्रव्यसे अभिन्न है वैसे परमात्माके अनेक गुणोकी पर्यायें भी परमात्मा द्रव्यसे भिन्न नही है । इससे यही सिद्ध किया गया कि गुणोंकी पर्यायें भी द्रव्य ही हैं वे द्रव्यको छोडकर पृथक नही हो सक्ती है।' ऐसी द्रव्यकी महिमाको नाननेका मतलब यह है कि हम द्रव्यके स्वभावका मनन करके रागद्वेष त्यागें और वीतरागभावमे रहकर निजानन्दकी प्राप्ति करके संसार - भ्रमणका अभाव करें ॥ १३ ॥ 1 t इस तरह खभावरूप या विभावरूप द्रव्यकी पर्यायें तथा गुणोकी पीयें नयकी अपेक्षासे द्रव्यका लक्षण है । ऐसे कथनकी मुख्यतासे दो गाथाओ से चौथा स्थल पूर्ण हुआ । उत्थानिका- आगे सत्ता और द्रव्यका अभेद है इस सम्बन्धमे फिर भी अन्य प्रकारसे युक्ति दिखलाते है ण हवदि जदि सहव असद्धवं हवदि तं कथं दव्व । हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा व्यं सयं सत्ता ॥ १४ ॥
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy