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________________ ६४] श्रीप्रवचनसारटोका। यहां तात्पर्य यह है कि द्रव्य अनेक गुणोंका समुदाय है। एक समयमें जैसे अनेक गुण द्रव्यमे होते हैं वैसे ही अनेक पर्यायें भी द्रव्यमे एक समयमें होती है। उन अनेक पर्यायोका द्रव्य ही आधार है । वे पर्याय द्रव्यसे जुदी नहीं है, किन्तु जैसे गुण समुदाय द्रव्य ही है तैसे पर्याय समुदाय द्रव्य ही है। अनेक गुणोंकी एक समयवर्ती पर्यायोको ही द्रव्यकी एक समयवर्ती पर्याय कहते हैं। पर्यायोंमें भेद अपेक्षा अनेकपना है अभेद अपेक्षा एकपना है। ऐसे ही गुणोमे भेद अपेक्षा अनेकपना है अभेद अपेक्षा एकपना है। जब हमने कहा कि यह जीव द्रव्य मनुष्यं पर्यायको छोडकर देव पर्यायमें बदला तव अभेदसे तो एक पर्याय बदली ऐसा झलकता है परन्तु भेदसे देखते हुए मनुष्य जीवमें जो अनेक गुणोकी पर्यायें थी वे ही देव जीवमें पलट गई हैं । अर्थात् जैसे मनुप्य पर्याय अनेक पर्यायोंका समूह है वैसे देव पर्याय अनेक पर्यायोका समूह है । अथवा जैसे गेहूके आटेसे रोटी बनाई, इसमे आटेकी पर्याय पलटकर रोटीकी पर्याय होगई । अभेदसे यह एक ही पर्याय है, परन्तु जब भेद द्वारा विचार करे तब जितने गुण आटेमे हैं वे सब अपनी पर्यायोसे पलटे हैं अर्थात् आटेमें जो अनेक पर्याये थी वे ही अनेक पर्यायें रोटीमें परिणमन कर गई । इसका भाव यह हुआ कि द्रव्यकी एक पर्याय गुणोकी अपेक्षा अनेक पर्यायरूप है। जिस समय एक जीव छद्मस्थ अल्पज्ञानीसे सर्वज्ञ परमात्मा अरहंत होता है, तब जीव द्रव्यकी अपेक्षा अन्तरात्माकी पर्याय पलटकर परमात्माकी पर्याय उत्पन्न हुई । जब उस जीव द्रव्यके अनेक गुणोंकी अपेक्षा विचार करें तब यह कहना होगा कि अंतरात्माके गुणोकी पर्यायें पलटकर
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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