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द्वितीय खंड।
[६३ जाता है तो भी आम्र फल ही है। इस तरह यह भाव है कि गुणकी पर्यायें भी द्रव्य ही है।
. भावार्थ-आचार्य ने इससे पहलेकी गाथामें द्रव्यकी पर्यायें द्रव्यसे अभिन्न होकर द्रव्य ही हैं ऐसा बताया था। इस गाथामें यह बताते हैं कि द्रव्यमे नितने गुण होते है वे सब जुदे २ परिणमन करते हैं । उन गुणोकी जो जो अवस्थाए होती हैं उनको गुण पर्यायें कहते हैं । जैसे द्रव्यके गुण द्रव्यसे एक रूप द्रव्य ही हैं अथवा द्रव्यकी पर्याय द्रव्यसे एक रूप द्रव्य ही है तैसे गुणोकी पर्यायें भी द्रव्यसे एक रूप द्रव्य ही है। __द्रव्य अपने गुणोंसे और गुणोकी पर्यायोसे जुदा नहीं है क्योंकि गुण और पर्यायरूप ही द्रव्य है। इसीको वृत्तिकारने दृष्टान्त देकर बताया है कि ज्ञान गुण जब वीतराग खसवेदनरूप श्रुतज्ञानकी अवस्थासे वढलकर केवलज्ञानकी अवस्थामे आता है अथवा मतिज्ञानकी स्मृतिरूप अवस्थाको छोडकर श्रुतज्ञानकी पर्यायमें आता है तब इन गुण पर्यायोमे जीव द्रव्य बराबर मौजूद है अथवा एक आमका फल अपनी सत्तासे रहता हुआ ही अपने स्पर्शादि गुणोंकी पर्यायोमे पलटता है-हरे वर्णसे पीला होनाता है। - 'जैसे द्रव्यमे द्रव्य समस्तकी अपेक्षा उत्पाद व्यय ध्रौव्य है अर्थात् द्रव्यकी पूर्व पर्यायका व्यय, वर्तमान पर्यायका उत्पाद और द्रव्यकी थिरता, तैसे ही हरएक गुणमें उत्पाद व्यय ध्रौव्य हैं-पूर्व गुणकी पर्यायका व्यय, वर्तमान पर्यायका उत्पाद और गुणकी थिरता। द्रव्यकी पर्याय जैसे द्रव्यसे जुदी नही हैं वैसे गुणकी पीयें द्रव्यसे जुदी नहीं हैं।
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