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________________ ५८ ] श्रीप्रवचनसारटोका। कर सकता है। यदि द्रव्यको ऐसा न माने और उसको बिलकुल नाश होनेवाला, फिर नए सिरेसे उत्पन्न होनेवाला मान लें तो सद द्रव्यका नाश व असत् द्रव्यका उत्पाद हो जायगा जो बिलकुल असंभव है। द्रव्यके भीतर पर्यायोंमें ही उत्पाद व्यय है। द्रव्य और उसके गुण सदा ध्रौव्य रहते है। इससे तात्पर्य यह है कि आत्माकी संसार पर्याय नष्ट होकर सिद्ध पर्याय होसक्ती है तथा दोनो पर्यायोंमें वही आत्मा वना रहेगा-इससे हम ससारी आत्माओंको उद्यम करके अपनी इस दुःखमय ससार पपर्यायका नाश करना चाहिये और परमानंदमई सिद्ध पर्यायको पैदा करना चाहिये। इसका उपाय सम्यग्ज्ञान पूर्वक साम्यभावका अभ्यास है। इस अभ्यासमें सदा लीन रहना चाहिये ॥ ११ ॥ इस तरह उत्पाद व्यय प्रौव्य रूप द्रव्यका लक्षण है। इस व्याख्यानकी मुख्यताके तीन गाथाओमें तीसरा स्थल पूर्ण हुआ। उत्थानिका-आगे इस वातको दिखलाते हैं कि द्रव्यकी पर्यायोकी अपेक्षा उत्पाद व्यय ध्रौव्य है, द्रव्यसे भिन्न नहीं है पाइन्भवदि य अण्णो पजाओ पजओ वयदि अण्णो । दव्वस्स तंपि दव्वं व पण ण उप्पण्णं ॥ १२ ॥ - प्रादुर्भवति चान्यः पर्याय पर्यायो व्येति अन्यः । द्रध्यस्य तदपि द्रव्य नैव प्रणष्टं नोत्पन्नम् ॥ १२ ॥ अन्वय सहित विशेषार्थ-( दन्वस्स) द्रव्यकी ( अण्णो पज्जाओ ) अन्य कोई पर्याय ( पाडुब्भवदि) प्रगट होती है (य) और (अण्णो पज्जाओ) अन्य कोई पूर्व पर्याय (वयदि) नष्ट होती
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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