________________
द्वितीय खंड |
[ ५३
भेद कहे गए तैसे ही सर्व द्रव्यकी पर्यायोमे यथासंभव जान लेना चाहिये यह अभिप्राय है ।
भावार्थ - इस गाथामें आचार्यने यह बताया है कि उत्पाद व्यय धौव्य द्रव्यसे भिन्न नहीं हैं । ये तीनों ही द्रव्यमें होते हैं । इनके बिना द्रव्य नहीं और द्रव्यके विना ये नही । जैसे बीजका नाश अकुरका फूटना तथा वृक्षत्वका धौव्य वृक्षके विना नहीं और वृक्ष इनके बिना नहीं होता है। मिट्टीके पिडका नाश, घटकी उत्पत्ति तथा मिट्टीपनेका धौव्य मिट्टी द्रव्यके विना नही और मिट्टी इनके बिना नहीं । दूधका नाग घीका उत्पाद, गोरसपनेका धौव्य गोरस द्रव्यके बिना नहीं और गोरस इन तीनके बिना नहीं है। इसी तरह वृत्तिकार के अनुसार मिथ्यात्वका नाश, सम्यन्ककी उत्पत्ति, आत्मापका ध्रौव्य आत्म द्रव्यके विना नही और आत्मा इन विना नहीं ! ऐसा हरएक द्रव्यका अपने उत्पाद व्यय ध्रौव्यके साथ आधार आय भाव है। पर्यायार्थिक नयसे अर्थात् अंश भेद या अंश कल्पनाकी दृष्टिसे उत्पाद व्यय धौव्य दिखते हैं परन्तु द्रव्यार्थिक नयसे ये भेद नही दिखते - द्रव्य अखंड एकरूप बराबर झलकता है। जो अनेक समय में एकसा चला आवे उसको अन्वय कहते हैं । अभिप्राय कहने का यह है कि उत्पाद व्यय धौव्य द्रव्य ही निश्चयसे हैं द्रव्यसे किसी तरह बिलकुल भिन्न नही है | भेद दृष्टिमे संज्ञा, संख्या, लक्षण प्रयोजनकी, अपेक्षा भेद है परन्तु प्रदेशोकी अपेक्षा भेद नही है । श्री आप्तमीमांसा में श्री समतभद्राचाचार्यने इसी बात को बतलाया है-
न सामान्यात्मनोदेति न व्येति व्यक्तमन्वयात् । व्येत्युदेति विशेषात्ते सदैकत्रोदयादि सत् ॥ ५७ ॥