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श्रीप्रवचनसारटीका । ___ अन्वयं सहित सामान्यार्थ-( उप्पादहिदिभंगा) उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य (पज्जएस) पर्यायोंमे (विजंते) रहते हैं। (पन्नाया) पर्यायें (णियदं हि) निश्चयसे ही (दव्व) द्रव्यमे (संति) रहती हैं। (तम्हा) इस कारणसे (सव्व) वे सब पर्यायें (डव्यं) द्रव्य (हवदि) हैं।
विशेषार्थ-वृत्तिकार सम्यग्दर्शन पर्यायका दृष्टांत देकर बताते है कि विशुद्ध ज्ञान दर्शन खभावरूप आत्मतत्वका निर्विकार स्वसंवेदन ज्ञानरूपसे उत्पाद, उसी ही समयमें स्वसंवेदन ज्ञानसे विलक्षण अज्ञान पर्यायरूपसे व्यय तथा इन दोनोका आधारभूत आत्मद्रव्यपनेकी अवस्था रूपसे धौव्य ऐसे ये तीनों ही भेट पर्यायोंमे रहते है अर्थात् सम्यक्त पूर्वक निर्विकार स्वसवेदन ज्ञान पर्यायमे उत्पाद है तथा स्वसंवेदन रहित अज्ञान पर्यायरूपमे व्यय तथा इन दोनोका आधाररूप आत्मद्रव्यपनेकी अवस्था रूपसे ध्रौव्य अपनी अपनी पर्यायोमे रहते है । और ये ऊपर कहे हुए लक्षण सहित । ज्ञान, अज्ञान और इन दोनोका आधाररूप आत्म द्रव्यपना ऐसो ये पर्याय निश्चय करके अपने २ संज्ञा लक्षण प्रयोजन आदिके भैदसे भेदरूप है तथापि आत्माके प्रदेशोमे होनेसे अभेदरूप हैं इसलिये जब निश्चयसे ये उत्पाद व्यय ध्रौव्य आधार आधेय भावसे द्रव्यमे रहते है तब यह स्वसवेदन ज्ञान आदि पर्यायरूप उत्पाद व्यय ध्रौव्य तीनो अन्वय द्रव्यार्थिक नयसे द्रव्य हैं। पूर्वकथित उत्पाद आदि तीनोंका तैसे ही स्वसंवेदन ज्ञान आदि तीनो पर्यायोका अनुगत आकारमे व अन्वय रूपसे जो आधार हो सो अन्वय द्रव्य कहलाता है। अन्वय द्रव्य जिसका विषय हो, उसको अन्वय द्रव्यार्थिक नय कहते है । जैसे यहां ज्ञान अज्ञान पर्यायोमें तीन