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________________ ४६ ] श्रीप्रवचनसारटीका। उसमेंसे कार्य हो सक्ते हैं। वास्तवमे यही अनेक धर्मात्मक सिद्धांत ठीक है । इसीसे हरएक सत्तारूप द्रव्यपर्यावकी अपेक्षा उत्पाद व्यय रूप और गुणोकी अपेक्षा थ्रीव्य रूप सिद्ध होती है। ऐसा ही सत्ताका स्वभाव है । द्रव्य सत् स्वरूप है और सत् उत्पाद व्यय ध्रौव्य खरूप है । यही बात यथार्थ है। इस तरह खरूप सत्ताको कहते हुए प्रथम गाथा, महासत्ताको कहते हुए. दूसरी गाथा, जैसे द्रव्य स्वतःसिद्ध है वेसे उसकी सत्ता गुण भी स्वत सिद्ध है ऐसा कहते हुए तीसरी गाथा, उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप होते हुए भी सत्ता हीको द्रव्य कहते हुए चौथी गाथा इस तरह चार गाथाओके द्वारा सत्ता लक्षणके व्याख्यानकी मुख्यता करके दूसरा स्थल पूर्ण हुआ ॥ ८॥ उत्थानिका-आगे उत्पाद व्यय ध्रौव्य इन तीनोमे परस्पर अपेक्षापना है ऐसा दिखलाते है ण भवो भंगविहीणो, संगो वा णत्थि संभवविहीणो। उप्पादो वि य भंगो, ण विणा धोम्वेण अत्येण ॥९॥ न भवो भगविहीनो मेंगो वा नास्ति संभवविहीनः । उत्पादोपि च भगो न बिना प्रौव्येणान ॥ ९ ॥ अन्वय सहित सामान्यार्थ-(भग विहीणो भवो ण) व्ययके विना उत्पाद नहीं होता है (वा) तथा (संभवविहीणो भगो णत्थि) उत्पादके विना मग या व्यय नहीं होता है (य) और (उप्पादो वि) उत्पद तथा ( भंगो ) व्यय ( धोव्वेण अत्थेण विणा ण ) प्रौव्यं पदार्थके विना नहीं होते। विशेषार्थ वृत्तिकार सम्यक्तकी उत्पत्तिका द्रष्टांत देकर इन
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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