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________________ द्वितीय खंड | [ ४५ दोष होगा इसके लिये स्वामी समतभद्राचार्यने आप्तमीमासा में कहा है - HIN नित्यत्वका•तपक्षेsपि विक्रिया ने पपद्यते । are arretera: क प्रमाणं क नत्फलम् ॥ ३७ ॥ भावार्थ यदि पदार्थ मात्र नित्त्यपना ही है, अनित्त्यपना नहीं है ऐसा एकान्त पक्ष माना जायगा तो उसमे एक अवस्थासे दूसरी अवस्थामे पलटना नही होगा वस्तु सदा एक रूप ही बनी रहेगी उसमे कोई विकार नही होगा, तब कर्ता कर्म करण आदि कारकोका पहले ही अभाव होनेसे उसमे प्रमाण और उसके फलकी कल्पना नहीं हो सकेगी । और यदि वस्तुको सर्वथा अनित्य माना जायेगा तो क्या दोष होगा उसके लिये भी स्वामी वही कहते हैं --- 'क्षणिकेया तपोऽपि प्रेत्यभावाद्यसम्भव. । प्रत्यभिज्ञायभावान्न कार्यारम्भः कुतः फलम् ॥ ४१ ॥ भावार्थ - यदि वस्तुको सर्वथा क्षणिक माना जायगा कि पदार्थ क्षणक्षणमे बिलकुल नष्ट होता है तौ यह दोष आएगा कि जीवके परलोककी व ससार व मोक्षकी सिद्धि न होगी तथा प्रत्यभिज्ञान न होगा कि यह वही वस्तु है जिसको पहले देखा था न किसी पदार्थके लिये विचार या तर्क हो सकेगा और न घट पट बनानेके कार्यका आरंभ हो सकेगा न कार्य बनके उससे कोई फलकी साधना की जा सकेगी। परंतु यदि वस्तुको गुणोके सदा स्थिर रहने की अपेक्षासे नित्य माना जावे और उन गुणोंमें समय समय • पर्याय विनशती उपजती है इससे अनित्य माना जाये तब ही , 1
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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