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________________ द्वितीय खंड। - [४३ अन्वय सहित विशेपार्थ-(सहावे) स्वभावमें (अवट्ठिय) रहा हुआ (सत् ) सत् (ढव्व) द्रव्य है । (दव्वस्स) द्रव्यका (अत्थेसु) गुण पर्यायोंमे (जो) जो ( ठिदिसभवणाससबद्धो ) प्रौव्य, उत्पाद व्यय सहित (परिणामो) परिणाम है (सो) वह (हि) ही (सहावो) खभाव है। विशेषार्थ-यहा टीकाकार परमात्मा द्रव्यपर प्रथम घटाकर समझाते हैं। स्वभावमें तिष्ठा हुआ शुद्ध चेतनाका अन्वयरूप (बरावर) अस्तित्व परमात्मा द्रव्य है। उस परमात्मा द्रव्यका अपने केवलज्ञानादि गुण और सिद्धत्व यहा अरहंतपनेसे मतलब ( है ) आदि पर्यायोमे अपने आत्माकी प्राप्ति रूप उत्पाद उसी ही समयमे परमागमकी भाषासे एकत्ववितर्क अवीचार रूप दूसरे शुक्ल ध्यानका या शुद्ध उपादानरूप सर्व रागादिके विकल्पकी उपाधिसे रहित स्वसवेदन ज्ञानपर्यायका नाश तथा उसी ही समय इन दोनो उत्पाद व्ययके आधाररूप परमात्म द्रव्यकी स्थिति इस तरह उत्पाद व्यय ध्रौव्य सम्बन्धी जो परिणाम है वही निश्चयसे उस परमात्म द्रव्यका केवलज्ञानादि गुण वा सिद्धत्व आदि पर्यायरूप स्वभाव है। गुण पर्याय द्रव्यके खभाव हैं इस लिये उनको अर्थ कहते है। इस तरह उत्पाद व्यय प्रौव्य इन तीन खभावसे एक समयमे यद्यपि पर्यायार्थिक नयसे परमात्म द्रव्य परिणमन करते है तथापि द्रव्यार्थिक नयसे सत्ता लक्षण रूप ही है । तीन लक्षण रूप होते हुए भी सत्ता लक्षण क्यो कहते है इसका समाधान यह है कि सत्ता उत्पाद व्यय 'प्रौव्य स्वरूप है। जैसा कहा है " उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् " जैसे यह परमात्म द्रव्य एक
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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