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________________ द्वितीय खंड। [४१ सदा पाए जाते हैं इसीसे इनको भेद करके समझानेसे अग्निका बोध अज्ञानीको होनाता है। द्रव्य और उसकी सत्ता सदासे है यह कथन उन सब मिथ्या भ्रमोको दूर करता है जो किसी समय जीव और अजीवकी सत्ताका अभाव मानते है या इनको ब्रह्मसे पैदा हुआ व ब्रह्ममे लय होना मानते है । हरएक द्रव्य जीव हो या पुद्गल अपने स्वरूपके अस्तित्वको सदासे रखता है-सदासे ही जीवमें जीवपना है, सदासे ही पुद्गलमे स्पर्ग, रस, गध, वर्णपना है। न किसी एकसे ये अनेक हुए न जीवसे पुद्गल हुए न पुद्गलसे जीव हुए-सब ही द्रव्य सदासे परिणमन करते हुए बने रहते हैं। यह बिलकुल अकाव्य सिद्धात है कि सत्का नाश नही ब असत्का उत्पाद नहीं। सत रूप द्रव्यमें ही पर्यायका उत्पाद या विनाश होता है, असमें नहीं हो सक्ता । स्वामी समतभद्राचार्यने आप्तमीमांसामें यही कहा है कि सत् पदार्थमें ही विधि निषेध या अस्तिनास्तिकी कल्पना हो सक्ती है द्रव्याद्यन्तरमावेन निषेधः सगिनः सत. । असद्भेदो न भावस्तु स्थान विधिनिपधयो. ॥ ४७ ॥ भावार्थ-सत् पदार्थमे ही अपने स्वद्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा विधि या अस्तित्त्व तथा परद्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा निषेध या नास्तित्त्व कहा जा सक्ता है । जो पदार्थ अभावरूप है या असत् है उसमे अस्तित्त्व या नास्तित्त्वकी कल्पना हो ही नहीं सक्ती है इस लिये जगतमे सर्व ही द्रव्य सतरूप हैं। ___ 'द्रव्य और उसकी सत्ता स्वभावसिद्ध अनादि है यह बात तीर्थकरोने अपनी२ दिव्यवाणीसे प्रकाशित की है तथा यही बात आगमसे भी प्रगट है।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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