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________________ ३८] - - श्रीप्रवचनसारटोका। विशेषार्थ यहां परमात्म द्रव्यपर घटाकर कहते है कि परमात्मारूपी द्रव्य स्वभावसे सिद्ध है क्योकि परमात्मा अनादि अनन्त, विना अन्य कारणकी अपेक्षाके भये अपने स्वतः सिद्ध केवलज्ञानादि गुणोंके आधारभृत है, सदा आनन्दमई सुगमृतरूपी परम समरसी भावमे परिणमन करते हुए सर्व शुद्ध आत्मप्रदेशोसे भरपुर हैं तथा शुद्ध उपादान रूपसे अपने ही स्वभावसे उत्पन्न है। जो खभावसे सिद्ध नही होता है वह द्रव्य भी नहीं होता है। जैसे द्विणुक आदि पुद्गलस्कंधकी पर्याय व मनुप्यादि जीवपर्याय । परमाणुओकी सत्ता स्वयंसिद्ध है तब ही उनके उपादान कारणसे द्विणुक आदि स्कंध बनते है । जीवकी सत्ता सदा सिद्ध है तब ही उसके उपादान कारणसे मनुष्यादि पर्यायें होती है। जैसे द्रव्य स्वभावसे सिद्ध है वसे उसकी सत्ता भी स्वभावसे सिद्ध है सत्ता किसी भिन्न सत्ताके समवायसे नही हुई है। क्योंकि सत्ता और द्रव्यमें सज्ञा, लक्षण, प्रयोजनादिसे भेद होनेपर भी जैसे दंड और दंडी पुरुषके प्रदेशोका भेद है ऐसी प्रदेशोकी भिन्नता सत्ता और द्रव्यमे नहीं है । सत्ता गुण है इस लिये द्रव्यमे सदा पाया जाता है । तथा वह सत्तागुण द्रव्यगुणीसे कभी पृथक् नही हो सक्ता है इस बातको निश्चयसे तीर्थकरोने वर्णन किया है तथा यही बात सन्तानकी अपेक्षा द्रव्यार्थिक नयसे अनादि अनत आगमसे भी सिद्ध है। जो ऐसा वस्तुकास्वरूप नही स्वीकार करता है वह मिथ्यादृष्टी है । इस तरह जैसा परमात्म द्रव्य स्वभावसे सिद्ध है तैसे ही सर्व द्रव्योको स्वभावसे सिद्ध जानना चाहिये । यहा यह अभिप्राय है कि द्रव्यको किसी पुरुपने रचा नहीं है और न द्रव्यका सत्ता
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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