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________________ ३६ ] श्रीप्रवचनसारटीका । जीव चेतन होता है यह वाक्य चेतनपनेको सब जीवोमें व्यापक झलकाता है और एक साथ इसका बोध संग्रह नयसे कराता है। पुद्गल मूर्तीक हैं यह वाक्य सर्व पुलोमं स्पर्श रस गंध वर्णकी सत्ताका बोध कराता है अर्थात मूर्तीकपना जो सब पुद्गलोमें व्यापक था उस व्यापक स्वभावको इस वाक्यने एकदम सामान्यपने बोध करा दिया। इस ही तरह जब हम कहें कि सर्व सत् है तब यह वाक्य यही बोध कराना है कि सत्ता सर्व पदार्थों में व्यापक है अथवा सर्व पदार्थोंमे सादृश्य अस्तित्त्व है । इस ही तरह यदि कहा जाय कि यह जगत परिवर्तनशील है, तब यह वाक्य यह बोध कराता है कि परिवर्तनपना या अवस्थाओंका बदलना यह स्वभाव सर्व पदार्थोंमें एक काल व्यापक है । निश्रयनयसे सब जीव शुद्ध है - यह वाक्य बोध कराता है कि स्वभावकी अपेक्षा शुद्धपना सर्व जीवोमे व्यापक है । महासत्ता सर्व जगतके पदार्थो मे अस्तित्त्व स्वभावकी व्यापकताको बताती है। इस तरह वस्तुका स्वभाव तीर्थंकरोंने प्रक्ट किया है । यहा आचार्यने श्री ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकरका नाम इसी लिये लिया है कि इस भरतक्षेत्र मे इस कालमे भोगभूमिके पीछे तथा कर्मभूमिकी आदिमे सच्चे वस्तु स्वभावको प्रगट करनेवाले प्रथम ही श्री आदिनाथ भगवान हुए हैं। उनसे लेकर हमतक सर्वका यही मत है कि भिन्न २ द्रव्यकी सत्ता सो अवान्तर सत्ता है और सबकी एक सत्ता सो महासत्ता है । इस कथनको प्रगट करके आचार्यने यह तत्त्व प्रगट किया है कि यह जगत् सत्रूप होकर भी अनेक विचित्र रूप है । यह "
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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