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द्वितीय खंड। सर्व ही पदार्थोका विना उनकी जातिके विरोधके एक साथ ग्रहण होजाता है, ऐसा अर्थ है।
भावार्थ-इस गाथामें श्री कुंढकुदआचार्यने महासत्ताका स्वरूप बताया है । सत्ता दो प्रकारकी है, एक अवान्तर सत्ता या स्वरूपास्तित्त्व, दूसरी महासत्ता या सादृश्यास्तित्त्व। हरएक द्रव्यके भिन्न २ खरूपको बतानेवाली अवान्तर सत्ता है तथा सर्व द्रव्योंमें एक सत्पनेका एक काल बोध करानेवाली महासत्ता है । सतपना था अस्तित्त्व सर्व चेतन अचेतन पदार्थोमे पाया जाता है इसलिये सत्पना सर्व पदार्थोमे व्यापक है उसकी अपेक्षासे महासत्ता या सादृश्यास्तित्त्व है । जो स्वभाव बहुतसोमें एकसा होता है उसकी अपेक्षा एक कहनेका व्यवहार जगतमें है । जेसे यह सेना भाग रही है। यहा भागना स्वभाव सर्व हाथी घोडे रथ पयादोंमे व्यापक है इसलिये सेना भाग रही है इतना ही वाक्य सबके भागनेका बोध करा देता है । अथवा यह बाग फूल रहा है इतना ही वाक्य इसका बोध करा देता है कि इस धागके सर्व ही वृक्षोमें फूल खिल रहे है। यहा फूलोका खिलना यह स्वभाव सब वृक्षोमे व्यापक है । जो - स्वभाव या कार्य एक समयमे अनेकोमें पाया जावे उनके एक साथ बोध करनेवाले ज्ञानको या बोध करानेवाले वचन प्रयोगको सग्रह नय कहते हैं । लडके खेल रहे है । यह सग्रह नयका वाक्य है क्योकि खेलना सबमें एक साथ व्याप रहा है। यद्यपि हरएक लडकेके खेलमें भिन्नता है तथापि खेलना मात्र सबमें सामान्य है। कोयलें मीठा बोलती हैं, इस वाक्यने भी मीठा बोलना अनेक कोयलोंमें व्यापक है इस बातको सग्रह नयसे वतलाया । इस ही तरह