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________________ २४ ] श्रीप्रवचनसारटीका। द्रव्यमें एक वस्तुत्त्व नामका सामान्य गुण है निसमे हरएक द्रव्य व्यर्थ न रहकर कुछ कार्य करता रहता है। कार्य तब ही होता है जव द्रव्यमें परिणमन होगा अर्थात् उसकी अवस्था बदलेगी । अर्थात पुरानी अवस्था नष्ट होकर नवीन अवस्था उत्पन्न होगी और वह जिसमे अवस्था हुई बना रहेगा। यदि उत्पाद व्यय ध्रौव्यपना सत्पदार्थमे न होता तो न कोई जन्मता न मरता न किसीके कर्मबंधसे अशुद्धता होती, न कोई कर्मबंध तोडकर शुद्ध मुक्त होता, न परमाणुओके स्कंध बनते न स्कधके परमाणु बनते. न बीजसे वृक्ष होता न वृक्षसे फल होते व इधन होता और न जीव बदलते हुए भी अपने जीवत्त्वको कायम रख सक्ता और न पुद्गल बदलते हुए अपने पुद्गलपनेको ध्रुव रख सक्ता इससे यह बात निःसन्देह ठीक है कि हरएक सत् द्रव्य उत्पादादि तीन स्वभाव रूप है । इन्ही , स्वभावोके कारण ही जगतमे नाना प्रकारके कार्य दीखते हैं। रोगी होकर निरोग होना, इसी तीन रूप स्वभावसे ही बन सक्ता है। शिप्योको विशेषपने द्रव्यका लक्षण स्पष्ट करनेके लिये आचार्यने तीसरा लक्षण भी किया है कि जिसमे गुण हो और पर्यायें हो सो द्रव्य है। द्रव्य सदा गुण और पर्यायोसे शून्य नहीं होता। जो द्रव्यके सदा साथ रहे और द्रव्यकी प्रशंसा करें वे गुण हैं । गुण द्रव्यके आश्रय रहते है और स्वय किन्हीं और गुणोको अपनेमे नही रखते, गुण और गुणी या द्रव्यका तादात्म्य अविनाभावी सम्बंध है यह वात दूसरी गाथामे समझा दी गई है । गुणोमे ही जो परिणमन होकर अवस्था समय समय होती है उसको पर्याय कहते हैं । हरएक पर्याय एक समय मात्र ठहरती है फिर दूसरी
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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