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________________ द्वितीय खंड। [२३ किसी अवस्थाकी उत्पत्तिको उत्पाद वकिसी अवस्थाके नाशको व्यय तथा जिसमे ये अवस्थाए नाग या उत्पन्न हुई उसका सदा बना रहना सो ध्रौव्य है। ये तीन स्वभाव हरएक द्रव्यमे सदा पाए जाते है। ये तीन स्वभाव ही द्रव्यकी सत्ताको सिद्ध करते है। इसका दृष्टात यह है कि हमारे हाथमे एकसुवर्णकी मुद्रिका है। जब हम उसको तोडकर बालिया बनाते तब मुद्रिकाकी अवस्थाका नाश या व्यय होता है व वालियोकी अवस्थाका उत्पाद या जन्म होता है परंतु दोनो ही अवस्थामे वह सुवर्ण ही रहा है। गेहूके दानोको जव चक्कीमें पीसा जाता है तब वहा तीनो ही स्वभाव एक समयमे झलकते है। जब गेहूंका दाना मिटता तब ही उसका चूर्ण आटा बनता तथा जो परमाणु गेहके दानेमे थे वे ही परमाणु आटेमे हैं इस तरह उत्पाद व्यय ध्रौव्य एक समयमे सिद्ध होगया । एक आदमी सोया पड़ा था जब जागा तब उसकी निद्रा अवस्थाका नाश हुआ, जागृत अवस्थाका उत्पाद हुआ तथा मनुष्यपना बना रहा । यही उत्पाद व्यय ध्रौव्य है । एक मनुष्य शातिसे बैठा था किसी स्त्रीको देखकर रागी होगया। जिस समय रागी हुआ उसकी राग अवस्थाका उत्पाद हुआ, शांतिकी अवस्थाका व्यय हुआ, मनुप्यका जीवनपना ध्रौव्य है। इन तीन खभावोसे हरएक वस्तु परिणमन करती है। यही परिणमन सत्ताका द्योतक है । जब हम किसी वृद्ध मनुष्यको देखते हम उसकी इस अवस्थाको देखकर यही समझते है कि यह वही मनुष्य है जो २० वर्ष पहले युवान था। द्रव्य उसे कहते है जो द्रवणशील हो अर्थात् जो कूटस्थ नित्य न रहकर सटा परिणमन करता रहे। द्रव्यमे द्रव्यत्त्व नामका सामान्य गुण इसी भावका द्योतक है।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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