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________________ द्वितीय खंड [२५ पर्याय हो जाती है। स्थूल दृष्टिवालोको पर्याय स्थूलरूपसे कुछ देरतक ठहरी हुई मालूम होती है। जैसे वृक्षमें एक हरे आमको सवेरे देखा था फिर संध्याको देखा तव भी हरा ही दीखा परन्तु जब उसको आठ दिन पीछे देखा तब उसे पीला दीखा । वास्तवमें आमके भीतर वर्ण नामके गुणका परिणमन हर समय होता रहा है हर समय वह बदलता रहा है तब ही वह ८ दिनमे पीला हुआ है, परन्तु म्थूल दृष्टिमें सूक्ष्म परिणमन समझमें नहीं आता । मध्म ज्ञानी इस सूक्ष्म समय समयकी हरएक पर्यायको समझ सक्ते है द्रव्यमे गुणोफी ही ध्रुवता या नित्यता रहती है तथा पर्यायोका ही उत्पाद और व्यय होना है इसी बातको यह गुण पर्यायवान द्रव्यका लक्षण द्योतित करता है। इसीसे यह सिद्ध है कि द्रव्य नित्यानित्त्यात्मक है। हर समय उसमें नित्यपना और अनित्यपना दोनो स्वभाव हैं । गुणोंके कारण नित्यपना और पर्यायोके कारण अनित्यपना है। यद्यपि ये दो खभाव विरोधी माटम पडते है परन्तु यदि द्रव्यमें ये दोनों ही न हों तो द्रव्यसे कुछ भी अर्थ सिद्ध नही होसक्ता है । यदि हम सुवर्णको कूटस्थ नित्य मान लें तो सुवर्णकी कोई अवस्था नही हो सक्ती-उससे बाली, मुद्रिका, भुजबन्द आदि कोई आभूषण नहीं वन सक्ते और यदि सुवर्णको सर्वथा अनित्य मान ले तो वह एक समय मात्र ही ठहरेगा। जब वह ठहर ही नही सक्ता तब उसमेसे कोई पढार्थ कैसे बन सक्ता है ? इसलिये एक ही स्वभाव एकान्तसे माननेपर द्रव्यको सत्ता ही नही ठहर सक्ती है । वास्तवमे यही बात ठीक है कि द्रव्य कथंचित् या स्यात् नित्य है और
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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