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द्वितीय खंड।
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लाला परमानन्दजी, राधेलाल महान ॥ ३४ ॥ लाला मकसूदन सुधी, सुगन्धचन्द वृपधार । लाला बनवारी रहे, सुलतासिह सुकार ॥ ३५ ॥ धर्मी पडित बुद्धिमय, सिह कबूल सुहाय । भाता पंडित रामनी, लाल सहि सुखदाय ॥ ३६॥ पंडित श्री अरदासजी, जीयालाल प्रवीण । पडित फुलनारी भले, भीखमचन्द अदीन ।। ३७॥ फूलचन्द पडित सुधी, आदिक जैनीलाल | विद्यारत रूपचन्दनी, मुनिसुव्रत श्रीपाल ॥ ३८ ॥ जय भगवान सुतत्त्व विद, धर्मी बी०ए० सार । जयकुमार उपकार कर, वड इस्कूल मझार ॥ ३९ ॥ इन आदिकके प्रेमवश, जलपथ वर्षाकाल । धर्मकथा गोष्टी शुभग, सतसगतिमे टाल ॥ ४० ॥ अवसर पाय सुहावनो, भाषा रची बनाय । ज्ञेयतत्वकी दीपिका प्रवचनसार सुहाय ॥ ४१ ॥ श्री कुन्दकुन्द ज्ञाता बडे, सूत्र सुपासत कीन । श्री सूरी जयसेनकत, सस्कृतवृत्ति प्रवीन ॥ ४२ ॥ ताकी धर अनुकूलता, बालबोध लिख सार । निन आतमकी भावना, करी सुमिस यह धार ॥ ४३ ॥ कार्तिक वदि अष्टम दिना, दिवस गुरु सुखकार । कर समाप्त हर्षित हुओ, रुचि अध्यातम धार ॥ ४४ ॥ पढ़े सुनें नरनारि सब, पावें रुचि अध्यात्म । चढ़ नौका त्रयरत्नकी, पार करें निज आत्म ॥ ४५ ॥