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श्रीप्रवचनसारटोका।
माहदजी सिधिया, था बलवान अपार । मरहटा दल लेवकर, फिर आयो इकवार ॥ २३ ॥ कर अधिकार वासा लियो, दिहली नृप वश कीन । बहुतकाल इस देशमें, राखी शक्ति प्रवीन ॥ २४ ॥ अठारहसै तीनमे, वृटिश कियो अधिकार । जैनी जन ह्यां बहु रहें, धन कण कंचनधार ॥ २५ ॥ वाईस जिन मंदिर भले, पूजा शास्त्र सुहाय । कालदोष सब क्षय गए, नूतन चार लखाय ॥ २६ ॥ इनमें भी प्राचीन अति, दुर्ग समान अलंघ। पंचनरुत श्री पार्थको, धाम जनत सब संघ ॥ २७ ॥ तिनमें उन मंदिरनकी, प्रतिमा हैं प्राचीन । कोईएक संवत विन लखे, अति प्राचीन स्वलीन ॥ २८ ॥ द्वितीय लघु दिहली धनी, सुगनचंद संतलाल । कियो महा रुचि पायके, सफल हुओ धन काल ॥ २९ ॥ तृतीय बनो बाजारमें, अति सुहाय शुभ दाय । बनवारी हैं चौधरी, लक्ष्मी सफल कराय ॥ ३० ॥ चौथा शुभ मंदिर रचो, दुन्दीलाल सुनान । नरनारी सब देहरे, सेवत धर्म महान ॥ ३१ ॥ तीनशतक गृह वसरहे, जैनी अग्गरवाल । परम दिगम्बर सब सुखी, नर नारी अर वाल ॥ ३२ ॥ मुखिया बद्रीदासके, सुत हैं लक्ष्मीचन्द । वीरराय पदवी घरे, धर्मातम सुखकन्द ॥ ३३॥ द्वितीय चिरंजीलाल हैं, सरल चित्त धनवान ।