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द्वितीय खंड 1
११ ॥
धर्म का चित दियो, आतम गुण अवलोय ॥ विक्रम अस्सी उनविसा, वरषाकाल विचार । कहां धर्मसाधन बढ़े, यह विचार उर धार ॥ १२ ॥ इन्द्रप्रस्थके निकट ही, पानीपथ सुखदाय ॥ जलपथ भी याको कहें, पांडुपुराण बताय ॥ १३ ॥ पांडुतनय राजा नकुल, राम करे इस धाम । जैन धर्म परभावना, करत अर्थ वृष काम ॥ १४ ॥ प्रजा मगन आनन्दमें, व्याधि शोक नहिं होय । श्री नेमिनाथके तीर्थमें, निर्वाधा सब लोय ॥ ११ ॥ पानीपथ बहु कालसे, रह्यो नम
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आबाद । बेमरजाद ॥ १६ ॥ अधिकार । सुयशकरतार ॥ १७ ॥
जैन नृपति हिन्दू धनी, हुए कालचक्र के फेरसे, मुसलमान वीर युद्ध या क्षेत्रमें हुए पन्द्रासै छन्वीस सन्, सुलतां हबाहीम | वावरशाह से युद्ध कर, मरो यहां अति भीम ॥ १८ ॥ सन् पन्द्रासै छप्पना, हीमू हिन्दू वीर ।
जलपथ धीर ॥ १९ ॥ लडो मदधार ।
संज्ञा विक्रमजीत घर, घेरो अकबर सेना भिड गई, खूब अन्त सबल भागत भयो, अकबर पुन अधिकार ॥ २० ॥ सन सत्रासे इकसठा, मरहटा दल आय । पानीपथमें अड़ गया, बहुविध सैन्य जमाय ॥ २१ ॥ शाह अहमदादुर्रनी, लड़ो बहुत मरहटा भागे तभी छोड़ खेत
रिसवाय । अकुलाय ॥ २२ ॥