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________________ द्वितीय खंड"। [३७ मुख्य श्रोता'श्री शिवकुमार महाराज हैं दोनों पंचम कालमें हुए इस लिये इसी भवसे मोक्षगामी नहीं हैं। इसलिये इनके साम्यभाव ग्रह्णकी प्रतिज्ञा आयु क्षयके पीछे नहीं रह सकती है, क्योंकि ये शरीर छोड़कर स्वर्गादि गतियोंमें गए होंगे। प्रतिज्ञाकी पूर्णता उनहीकी होती है जिन्होंने रत्नत्रय साधनकर तद्भव मोक्ष प्राप्त की है। वे अनंतकाल तक साम्यभावमें लीन रहेंगे। यहां इस प्रवचनसारके दो अधिकार कहकर श्री कुन्दकुन्दाचार्यजीने अपने कथनकी प्रतिज्ञाको अच्छी तरह निर्वाहा है। यह भाव है। वास्तवमें निर्ममत्त्वभाव ही परमानद दायक है जैसा श्री कुलभद्र आचार्यने सारसमुच्चयमें कहा है: निर्ममत्त्व पर तत्व निर्ममत्वं पर सुखम् । निर्भमत्त्व पर बीज मोक्षस्य कथित बुधैः ॥ २३४ ॥ निर्ममरवे सदा सौख्य ससार स्थनिच्छेदनम् ।। जायते परमोत्कृष्टमात्मनः सस्थिते सति ॥ २३५ ॥ समता सर्वभूतेषु यः करोति सुम नसः । ममत्वभावनिर्मुक्तो यात्यसो पदमव्ययम् ॥ २१३ ॥ भावार्थ-ममतासे दूर रहना परम तत्त्व है । ममता रहितपना परम सुख है, निर्ममताहीको बुद्धिमानोने मोक्षका उत्तम बीज कहा है । निर्ममता होते हुए निन आत्मामें जो स्थिर होता है उसको संसारकी स्थितिका छेदक परम उत्कृष्ट सुख प्राप्त होता है। जो भव्य मन सम्यक्ती जीव सर्व प्राणियोमें समता करके ममता भावसे छूट नाता ही अविनाशीपदको प्राप्त करता है। .
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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